जीवन के तीन अध्याय | Jivan Ke Teen Adhyaya

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Jivan Ke Teen Adhyaya by राजकिशोरी देवी - Rajkishori Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जोवन के तीन अध्याय केवल श्राचीन अया के कारणा स्ना जाति ॐ उत्क्प का पथ रोकना में उचित नदं मानता ! पिताजी ! इस विषय पर सुझे सममाना व्यर्थ है। मैं तो यहाँ तक मानता हूँ कि स्त्री व्यभिचारिणी दो जाय यद भी सच्य है, पर उन्हे पर्दे मेँ रखना नीक नद्दी । इस पर मेरा विश्वास अटल है, बदलने वाला नहीं । चर छोड़ने में भी हानि क्या है ? समय पड़ने पर बड़ों-बढ़ों ने घर छोडे हैं। आप कहेंगे “तुम लड़के हो । तुम कैसे अपनी स्री और लड़के की रक्ता कर सदोगे १ तो मेरा जवाब यद्दी है कि आपको मेरे ऊपर विश्वास करना चादिए। यदि आपने मेरो शादी कर दी, तो फ़िर उसकी जिम्मेदारी के लायक भी सुमे मानना यद़ेया । बदनामी तो मेरे जैसे लोगों के भाग्य में वदा द्वी है नाज समाज गद्ास्‍वार्थों है। सब अपने स्वाये के लिए करते हैं, तो फ़िर मैं क्‍यों न अपना भादर्श देखू । समाज में इतने व्यभिचार नित्य द्वोते हैं, पर समाज चू तक नहीं करता! केवल उसका रोप सुधारकों पर हो जाता है। सैर वह शेष करे या न करे मुझे क्या मतलब ? हम ते अपना रास्ता देखेंगे | कष्ट अवश्य सहना होगा । भाप कहेंगे कि छोटे बच्चे की बहुत कष्ट दोगा । पर उसको तो सबसे कम कष्ट होगा उसे तो अमा केवल भर पेट दूध चादिए। हाँ, उसओ माँ को कम अधिक करने द्वोगे । पर स्रो के लिए सबसे अधिक कट स्वामी से त्यक्ष होने का है। यद कष्ट जो बद यहाँ पा रहो हैं और समवत यदि उपाय न हुआ तो आजन्म पायगी, उससे वह बचेगी और उसे भी भाराम होगा। आपलोंगों को छोड़ने से हमें कट द्वोगा सह्दो, पर चहाँ ( २५ )




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