वाक्यविन्यास का सैद्धान्तिक पक्ष | Vakyavinyas Ka Saiddhantik Paksha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रणाीगत प्रारम्भिरी ¶
ये प्रन मापाश्योग के सिदान्त-निष्पादन के सिटान्त के हँ । निस्सदेह, भावप्रयोष
के युक्तिसगत प्रतिमान के भीतर, एक आधारभूत घटक के रूप मे, वह प्रजतक»
व्याकरण समादिष्ट होगा जो भाप के वक्ता-ओ्रोतरा ज्ञान को अभिव्यक्त करता है «
किल्नु यह प्रजनक-व्याकरण, स्वय मे, प्रात्यक्षिक प्रतिमाप अबवा भाषा-उत्तादन के
प्रतिमान के स्वरूप अथवा क्रियाविधि को निश्चित नहीं करता है | इस बिन्दु को
साष्ट करने के छिए करिए विविध प्रदस्नों के लिए देखिए-चॉम्स्की (1957) »ভীলন
(1961), मिलर और चॉम्स्को (1963) और बन्य अनेक प्रकाशन ।
इस विपय मे विद्यमान आति लग्रातार घुमाव देती चडी झा रही है कि पदावली
विषयक परिवततेद्र कदाचित् ठीक होगा। क्षिर भी, मैं सोचता हूँ कि पद, “प्रजनक-
ब्याकरण! पूर्रांतपां उपयुक्त है और इसलिए मैं प्रपोग मे लाता रहा हूँ । पद “प्रजनन
करना!” का जिस अर्थं मे यहा प्रयाप किया है, वह प्रयोग तर्कश्ास्त्र मे, विशेषत
सयोजतात्मक व्यवस्थाओं के पोष्ट के सिद्धान्त मे, पहले से होता आया है । पुतश्च,
“प्रजनत करना! (ह८गथ॥४८) हम्योट के पद “प्रजनन करना (धपट४08०४) को,
जिसका उन्होने ऐसा छगता है तत्त्तत इसी अथे मे प्रयोग किया है, सर्वाधिक उपयुक्त
अनुवाद सगता है। चू कि “प्रजनन” का यह प्रयोग तकंशास्त्र और भाषाई सिद्धान्त
की परपरा मे सुप्रतिष्ठित है, में कोई कारण नही देखता हूँ कि पदावली मे परिवर्तेन
विया जाए।
४2 निष्पादन सिद्धान्त की दिऔ्ला मे
इस पारम्परिक हृष्टिकोण के प्रति आपत्ति उठाने मे कोई तक॑ प्रतीत नही होता
है कि विष्यादन-सिद्धान्त कौ अन्वेषणा उसी सीमा तक पहुँच सकती है जहां तक
अन्तनिहित सामर्थ्य के बोब के द्वारा स्भव है। इसके अतिरिक्त निष्पादन पर हुए
द्वाल के कार्यों से इस अभिग्रह को नया समर्थन मिला प्रतीत होता है । जहाँ तक
में जानता हैं, स्वनविज्ञान के वाहर, निष्यादन-सिद्धान्त से सम्बद्ध जो कुछ स्यूल
परिणाम उपलब्ध हए है तपा जो कुद स्पष्ट सुझ्यव प्रस्तुत हुए हैं, वे निष्पादन
प्रतिभानों के उत अध्ययती से प्राप्त हुए हैं जिन्होने विशिष्द प्रकार के प्रजनक-
व्याकरणों को प्लिविष्ड पहिया है--अर्थात् उन अध्ययनों से प्राप्त हुए हैं जिनके
भ्राधार मे अन्तनिडित सामथ्यं के अभिग्रह हैं 12 विज्येप हूप से, स्मृति-सीमा तथा
स्मृति सगठन द्वारा निष्पादन पर अध्यारोपित परिसीम्राओ से रुम्वद और विभिन्न
अकार के विच्युत वाक्यो के सरचन मे व्याकरणिक युक्तियो के सप्रयोग से सम्बद्ध
प्रश्नो पर सुभावभरे प्रत्ववेलण हैं। परवर्ती प्रइन पर हम पुनः अध्याय 2 और 4 मे
विचार करेंगे। सामध्यं और निष्पादन के अन्तर को स्पष्ट करने के लिए यह
उपयोगी होगा कि हम स्मृति, समय और पहुच की सीमा के सम्बन्ध में निष्पादन
प्रतिमानी के पिछले कुछ वर्षों में हुए प्रध्यण्न से उपल्य कुछ सुझावों और परिणामों
के सारा को सक्षेपर में अस्तुत कर ।
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