ऋषभायण महाकाव्य | Rishabhayan Mahakavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
624
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ही जाते । दान देने की भावना.सद। बनी रहती है । जीवनं सादा, सरले प्राडम्बर
हीन प्रौर श्वसन रहिख है भारतवषं के सभौ तीर्थोकी यत्रायं की हैष भी तीथं
यात्रायें करते रहते है वर्ष में ३ से ४ महीने तीथे यात्रा में ही व्यतीत करते हैं।
यहाँ तक कि लंदन में पच् कल्याणाक होने पर वहाँ की|यात्रा करने गये व दान दिया |
दिगम्बर जेन धर्म को रक्षा किस प्रकार भ्रक्षुण्ण रहे इसको सदा चिन्ता
रहती है धामिक श्रनुष्ठान में जाना देखना समभना साधुझों विद्वानों क्री सेवा
करना जैसे कार्यो द्वारा धर्म की प्रभावना में सहायक होते हैं। पंडितों विद्वानों को
समय देना एवं उनकी सहायता करना परम कतंव्य मानते हैं। सबके प्रति समानता
का व्यवहार रखते हैं प्रत्येक की सहायता के लिए शक्ति श्रनुसार तत्पर रहते है । `
शिक्षा के प्रति स्वयं न शिक्षित होने पर भी विशेष झनुराग है। गरीब
विद्यार्थियों को शिक्षा की व्यवस्था करते हैं उन्हें पुस्तके व झ्राथिक सहायता देते
है । धामिक विद्यालयों को. दान देते हैं। निजो पुष्तकों का ग्रच्छा संग्रह ই।
निशुल्क चिकित्सालय चलाने में योगदान देते हैं औषधिदान करते रहते
है 'जीवदया' सस्था के मत्री है। सभी सस्थाओ को दान देते रहते हैं ।
जेन धर्म प्रवधिनो सभा, दिगम्बर जेन यवा परिषद, श्रो श्रांखल विश्व जेन
मिशन ज॑सी सस्थाग्रो के सं रश्क हैं। श्रावस्ती तीर क्षेत्र कमेटी के श्रध्यक्ष हैं। वहाँ
के विकास कार्य मे सलग्न है उसके लिए दिनरात परिश्रम करते हैं। १३ वर्ष से
व्यवसायसे प्रवकाश लेकर धमं कार्यम रतदै। शान्तिपूर्वक धमं बुद्धिसे जीवन
यापन करते है इसका प्रभाव सभी परिवार पर पडा है सभी पृत्र पुरा सहयोग धमं
कार्यों मे देते है। सोनागिर जी, समनेद शिखर जी, महाबीरजी को विशेष दान [वये
रामनगर तीथ क्षेत्र के लिए दान दिया। दान की भावना हमेशा बनी रहती है ।
गुप्तदान निरन्तर करते रहते है |
धामिक पुस्तक छपवाते है तथा नि:शुल्क बाँटते है। धर्म की प्रभावना मे ही
समय व्यतीत करते है। इसी भावना का फल ऋषभागन महाकाव्य हें ।
महाकाव्य ऋषभायन की रचना के लिए ग्रटूट लगन एवं मेहनत से काम
किया हैं । इस कार्य को सम्पन्न कराने हेतु कितनी ही बार यात्राये की हैं विज्ञजनों
से परामर्श भी किया हे ।
श्री शशि जी एवं रचनाकार डा, नागेन्द्र जी के प्रयत्न से इतनी सशक्त व
प्रेररमादायनी रचना प्रस्तुत हो सकी है । इस रचना द्वारा श्री सौभाग्यमल जी की
हादिक इच्छा मूर्तरूप ले सकी है । .
हषिनं जेन, मुरादाबाद
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