पैतीस बोल का थोकडा | Paitis Bol Ka Thokda

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ज्ञानश्री जी महाराज - Gyanshri Ji Maharaj

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श्री बल्लभश्री महाराज - Shree Ballabhshri Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 १३६ ८--देंने में दया प्राप्ति मे, खाने पटिनने पे श्नौर बल को काममें लाने में नो विपस डालता है उसे शस्तराय कर्म ऊह्ते हैं । ग्यारहवाँ । गुणम्थान चौदह सत द--मिव्यान,सामादनःपिशर) अबिरत सम्यग्‌ दृष्टि, टेशविरति, प्रमत्त, अप्रमत्त, निवृत्ति- करण, 'भनियृत्तिरण, सच्मसम्पराय, उपशान्तमोह, क्षीणमोह, सयोगी +वला श्रार योगी केपी, चरण आए भावों के क्षरा जीवा की जो स्थिति होती दे उसे म्‌.णम्यान यदे ६.-- १--अम्तु के ययार्य ( असली ) स्वरूप को ने मान कर उसमे पिपरीन (उलथ ) मानने बाहे षो पिथ्यान्वी फहते #, उस की स्थिति का नाप मिश्यास्तर गुण म्थान ई। ०--मम्यत्त्व मे गिरने प्र पीच में भावों की थोटे समय तक जो स्थिति होनी ह उसे सासादन गणम्थान फदन है । ३--सत्य और अस्त्य दोनों सो समान ही समकने वाला की स्थिति नहीँ होती है, अर्थात्‌ जहाँ वास्तविक तन्व




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