पद्य - प्रवाह | Padya Pravah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
702 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रगतिवाद : प्रयोगवाद
हिन्दी-साहित्य की पुरानी परम्परा के अनुसार धीरे-धीरे हिन्दी-
कविता तथा साहिस्य ने एक नया उभार लिया और हमारी कविता में
श्रगतिवाद तत्त्व निखरे | इस काल में यद्यपि सब तरह की रचनाएँ हुईं,
तथापि इनको हम प्रगति-काल के नाम से ही अभिहित करते हैं। इस
काल के उल्लेखनीय कवियों में सर्वेश्नी नरेन्द्र शर्मा, रामेश्वर शुक्ल,
“अंचल”, शिवमंगलसिंह सु मन , जानकीवरल म शास्त्री, हंसकुमार तिवारी,
केदारनाथ अ्रग्नवाल, नागाजु'न तथा पद्मसिंह शर्मा 'कमलेश' श्रादि के
नाम लिये जा सकते हैं। उक्त सभी कवि अपनी-अपनी विशेषताश्रों के
लिए विख्यात हैं | इधर प्रगतिवादी कविता की चरम परिणति प्रयोग-
वादी रचनाओं में आकर हुई है। इस प्रकार के प्रयोगवादी कान्ध के
प्रतिनिधि कवि सर्वश्नी अक्षय, धर्मवीर भारती, भवानीप्रसाद मिश्र
गिरिजाकुमार माथुर, नेमिचन्द्र, प्रभाकर माचवे, नरेशकुमार मेहता तथा
रघुवीरसहाय श्रादि मुख्य दं । जहां इस युगम प्रगतिवादी रचनाएँ हुईं
वहाँ यह नहीं समझ लेना चाहिए कि दूसरे प्रकार की काब्य-रचना
सर्वथा होनी बन्द हो गई | अनेक कवि अपनी-अपनी क्षमता के श्रनुरूप
हिन्दी-काब्य की श्रभिवृद्धि करने मं संलग्न दं इसप्रकार क कवियों में
सर्वश्री सोहनलाल द्विवेदी, सुमित्रा कुमारी सिनहा, विद्याव्ती 'कोकिल',
श्यामनारायण पाण्डेय, 'श्राससी” श्रादि के नाम लिये जा सकते हैं ।
हिन्दी-कविता के प्रारम्भ श्रोर विकास की यही छोटी-सी कहानी दें ।
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