विज्ञान के नये चरण | Vigyan Ke Naye Charan
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
139
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आर्मुसं ই
आवश्यकता होती है और साइकिल खींचते समय कम। अब तक यह माना जाता था
कि गाड़ी की मात्रा उसकी गति से निरपेक्ष है। ५० मन की गाड़ी की मात्रा में कोई
अन्तर नहीं आना चाहिए चाहे वह स्थिर हो, चाहे ६० मील प्रति घंटे के वेग से या
६०,००० मील प्रति घंटे के वेग से दौड़ रही हो। परन्तु आज का विज्ञान इस मत से
असहमत है। अब यह सिद्ध हो गया है कि मात्रा स्थिर नहीं रहती, अपितु वेग पर निर्भर
है। यदि स्थिर अवस्था में किसी वस्तु की मात्रा म, है और वह फिर व वेग से गति
में आये तो उस समय यदि उसकी मात्रा म है तो म और म, में निम्न सम्बन्ध होगा
म
स प्रकाश का वेग है।
यदि व का मान स की अपेक्षा अत्यधिक न्यून है तब म -म, अर्थात् गति का
मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। परन्तु जैसे-जैसे बह परिभित मात्रा वाली वस्तु का
वेग प्रकाश के वेग के निकट पहुंचता है वैसे-वेसे उसकी मात्रा भी अपरिमितता की ओर
अग्रसर होती है। मात्रा की वृद्धि का यह सिद्धान्त प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा
चुका है। चूंकि गति के साथ मात्रा में वृद्धि होती है और गति ऊर्जा (चल-ऊर्जा) का
दूसरा नाम है, यह मात्रा की वृद्धि ऊर्जा की वृद्धि से प्राप्त हाती है अर्थात् ऊर्जा में मात्रा
होती है। आइन्स्टीन मात्रा और ऊर्जा में निम्न सम्बन्ध भी स्थापित करने में सफल हुए :
ऊ-म सः
यहाँ ऊ ऊर्जा है, म मात्रा तथा स प्रकाश का वेग। इस समीकरण का परमाणु बम में
उपयोग सवंविदित है। इस प्रकार यदि लगभग २ पाउंड कोयले की मात्रा को ऊर्जा
में परिवर्तित किया जावे तो जानते हैं कितनी ऊर्जा निकलेगी ? २५० खरब किलो-
वाट घंटों की विद्युत् मिलेगी ।
हमारे बाह्य जगत् के ज्ञान की एक ओर की सीमाएं आइन्स्टीन के सापेक्ष-
सिद्धान्त से निर्धारित हैं और दूस री ओर की कण-सिद्धान्त से। सापेक्ष-सिद्धान्त हमें देश,
काल तथा विश्व के आकार से परिचय करातादै ओर कण सिद्धान्त मात्रा तथा ऊर्जा
की मूल इकाइयों को बताता है। परन्तु ये दो महान् सिद्धान्त सैद्धान्तिक दृष्टि से
विभिन्न हैं। आइन्स्टीन का एकता का सिद्धान्त इन दोनों सिद्धान्तों में पारस्परिक
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