गज़ल संघर्ष | Gazal Sangharsh

Gazal Sangharsh by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ ৪০) तुम आंखोंसे दिलमें मेरे क्योंकर उतरआए। जिस्के लिये बे-ताब है बिजलीकी तरहदिल। या रब ! वः्सुझे चांदसी-सूरत नजरआए।' हर रोज मजा दीदका छूटे निगाहे-शौक। हर सुबन्ह इलाही वही सूरत नजर आए ' हम सेफ-नबानीके देखादे अभी जौहर । रखता अगर दौसला दश्मव्दइधरआ९४५। गजल आगा । फिरताहू नदीं दीद्‌ सुयस्सर कई दिनसे । बरगश्तः है कुछ अपना मुकददर कईदिनसे॥ अब आंख चोराता है बराबर कई दिनसे। साकी नहीं देता हमें सागर कई-दिनसे ॥ सघी जो नहीं जल्फें-मुअम्बर कई दिनसे। गश आते हैं दिन-रातबराबर कई दिनसे ॥ देखी जो नहीं सुरते-दिछिवर कई दिनसे । , बेचैन है अपना दिले-सुज्तर कई दिनसे




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