प्रायश्चित भाग - 2 | Prayashchit Bhag - 2
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
302
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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नया परिचय.
सभनिक विचार करता हच्ा श्रीकान्त, रामदेव के पास श्च॑क्र
खडा दोगया । रामदेव को सी जानकी जल्दी थी, फिर भी वह
श्रीकान्त की तरफ देखता तथा उसी तरह हँसता हुआ खड़ा रहा ।
थोड़ी देर मे सुप्ाफिर कम होगये और प्लेटफॉर्म खाली हुआ । कुछ
भी बोले बिना, एक-दूसरे के सामने देखकर दोनों स्टेशन के वाहर
निकले ! बाहर, मैदान में आते ही श्रीकान्त ने पूछा--
“झ्राप कहाँ जायेंगे १”
“एक मित्र से मिलने के लिये यहाँ आया हूँ, रात को वापस
लोट जाऊँगा” 1
“कल ही आपको दीक्षा मिलेगी 1”
“हैँ, क्या तुम्हें कुछ आश्चर्य होता है?”
“आश्चये क्यों न होगा ! आखिर आपको हिन्दू-धर्म क्यों छोड़ना
पड रदा है १
“क्यों छोड़ना पड़ रहा है ! मेरी इतनी बात सुनकर मी तुम
न समझ पाये? में, मनुष्य हूँ, इसलिये? मुझे जीवित रहना है
आर सुखमय-जीवन व्यतीत करना है, इसलिये 1%
१
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