प्रायश्चित भाग - 2 | Prayashchit Bhag - 2

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Prayashchit Bhag - 2 by श्री सोपान - Shri Sopan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 नया परिचय. सभनिक विचार करता हच्ा श्रीकान्त, रामदेव के पास श्च॑क्र खडा दोगया । रामदेव को सी जानकी जल्दी थी, फिर भी वह श्रीकान्त की तरफ देखता तथा उसी तरह हँसता हुआ खड़ा रहा । थोड़ी देर मे सुप्ाफिर कम होगये और प्लेटफॉर्म खाली हुआ । कुछ भी बोले बिना, एक-दूसरे के सामने देखकर दोनों स्टेशन के वाहर निकले ! बाहर, मैदान में आते ही श्रीकान्त ने पूछा-- “झ्राप कहाँ जायेंगे १” “एक मित्र से मिलने के लिये यहाँ आया हूँ, रात को वापस लोट जाऊँगा” 1 “कल ही आपको दीक्षा मिलेगी 1” “हैँ, क्या तुम्हें कुछ आश्चर्य होता है?” “आश्चये क्यों न होगा ! आखिर आपको हिन्दू-धर्म क्‍यों छोड़ना पड रदा है १ “क्यों छोड़ना पड़ रहा है ! मेरी इतनी बात सुनकर मी तुम न समझ पाये? में, मनुष्य हूँ, इसलिये? मुझे जीवित रहना है आर सुखमय-जीवन व्यतीत करना है, इसलिये 1% १




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