खरगोश की सींग | Kharagosh Ki Sing

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Book Image : खरगोश की सींग  - Kharagosh Ki Sing

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाली उतना ही चलता-पुर्जा, सफल, कामयाव,सुसभ्य सुसस्ङृत माना जति दै! आप मेरी वात का यकीन न करते हों तो कोई भी अ्रखवार उठा कर देख लीजिए.। चडे-वडे राजनीत्तिन क्या करते हैं अपनी सभ्यता पर অলী কন वाले इगलैंड-अमरीका आदि देश ले लीजिए; वे सदा ही अन्य देशों की वात करते समय इसी मधुलिपटी गाली का उपयोग करते रहते हैं । चर्चिल ने जब गाघी को याद किया, या जब कभी फासिस्ट मु डों-लुटेरा आदि की चर्चा होती है, या आज- कल सोवियत्‌ रूस ओर तत्सवधी राजनैतिक मतावलीं की जव याद्‌ की जाती £ तव किन शब्दों में १ मार्को से छपने वाला राजनेतिक पाक्षिक न्यू यईम्ः तो एक श्रषना स्तम्भ दी चलाता दै--शगालियो पर प्रकाश/'--'स्पाट लाइट आन स्लैंडर! मैं यह प्रश्न मानव वश-शास्त्रियों के लिए छोड़ देता हैँ कि आदमी गाली देना सीखा कब से १ मेँ समता दू, जवसे वह सभ्यः वना ! श्रखवार मे श्राज कल हम देखते रै किं गाली देना एक कला वन गई है) इस गाली-दानकला के कुछ पेटेन्ट शिकार भी हँ--राष्ट्रवादी पत्रों में 'जिन्ना! और उनकी कम्पनी, वामपक्ती कहलाने वाले पत्रों में पुजीपति ! और फिर कोई भी गाली देने के लिए न मिले तो हिन्दी कवि तो सब से अच्छा, सीधा ओर सरस विपय है ही। मतजव यह है कि क्या राजनीति में, क्या साहित्य भे, क्या धर्म ओर दर्शन में, यदि आपके पास खोजने की दृष्टि हो तो गालिया देने वाले और गालियोँ खाने वाले आपको समृचें इतिहास में मिल जायेंगे । बहुत कुछ साहित्य जो वीर रस? के नाम से प्रख्यात है, वह इसी प्रकारकी प्रच्छुन्न गाली-दान क्रिया ল भरा हैं। वावा तुल्सीदास ने भी जहाँ 'जानकीसगल और धाव॑ती-परिणव? में विवाह की ढावतों की ज्योनार' वाली मधुर गालिया लिखी हैं, वहा क्रोध मे भर शारी देत नीच हरिचन्दहू दवीचहू




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