पावस प्रवचन [द्वितीय पुष्प] | Pavas Pravachan [Dwiteey Pushp]
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
167
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तपश्चर्या की ओर श्रधिक मुडी हुई है। धर्मेव्याव की तरक भी उनका
लक्ष्य है जो होना चाहिये लेकिन उसके साथ साथ वत्त मान जीवन को भी
समभने की आवश्यकता है और वह उत्तरदायित्व इप्त कथा के प्रसंग से
श्रा रहा है। यह माताओी के कत्त व्य से अधिक सम्बन्धित है।
गर्भ मे जब सतान आ जाती है तो माताञ्नो का ক্ষণ নাই?
शास्त्रों मे जहाँ बडी-बडी माताग्रो का वर्णन है, तीर्थंकर और चक्रवर्ती
की माताओं का वर्शान है, वे मात।ऐ गर्भावस्था में किस प्रकार कन्टरोलं
रख कर चलती थी । वे खाना भी इसी प्रकार का खाती थी कि जो गर्भस्थ
जीवन को हितकर होता हो, गर्भेस्थ जीव किसी प्रकार अस्त्रस्थ न हो
इस वात का ध्यान रख कर अपने मनयोग्य विषयो श्रौर खानपान का
त्याग करके चलती थी । वह महारानी भी शास्त्रीय সন্গ का श्रवण कर
चुकी थी कि गर्भावस्था में माता को क्या करना होता है ग्रादि।
महारानी भी अपने गर्भ की पालना करने लगी, इस वक्त उसके मन में
उदार भावना है। वह दान देने की दृष्टि से चल रही है ।
“शास्त्र श्रवण और ग्रुरु भक्ति मे हर्ष का नही है पार ।
दीन दुखी के दुःख मिटाये, श्रनाथ नाथता घार जी ।॥। निज गुण--
महारानी सोचने लगी कि मेरे गर्भ मे जिस महापुरुष का श्रवतरण
हुआ है उस महापूरुष के जीवन का उत्तरदातित्व मेरे पर है, इसको
वहन करने के लिये मै नितश्रति शास्त्र का श्रवण करूँ इतने समय तक
तो मैं शास्त्र श्रवण करने मे व्यवधान भी डाल देती, घम कथा नही सुनती
तो भी चलता था क्योकि मैं अपने जीवन तक ही सीमित थी लेकिन श्रव
जखूरीहो गया दहै । क्योकि गर्भस्थ जीवन मे जो सस्कार আরবী লন
शास्त्र मे वणित महापुरुषो के प्रावेगे। मनुष्य का जीवन कैसा होना
चाहिये इसका श्रवण मे करूगी तो वे सस्कार गर्भंमे रहने वाले महापुरुष
पर गिरेगे। इसलिये मेरा कतंव्य है कि शास्त्र श्रवण करने मे कभो पीछे त
रह । शास्त्र श्रवण के साथ ही साथ देव गुरु शौर धर्म का सदा खयाल
वना रहे, सम्यक् हृष्टि रूप से जीवन काल को लेकर चलू जिससे सही
जीवन का विकास होता रहे और उसका प्रभाव सतान पर पडता रहे ।
महारानी हरित होकर कार्ये मे लगती हुई सोचती है कि मेरी संतान
दातार बने और दीन दुखियो के दुख दूर करने वाली वने । वह सोच रही
हे दीन दुखियो के आँसू पी छने के लिये मै अभी से प्रवृत्ति कह गी तो वही
अ्रसर मेरी संतान पर झ्रायेगा और जब वह-गर्भ से वाहर -भ्रायेगी तो वह्
गरीबो की गरीबी मिटाने मे समर्थक बनेगी । ,
१२ | [ अनन्त-ज्योति
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