श्री गिरधर वचनामृत भाग - 2 | Shri Giradhar Vachanamrit Bhag - 2

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Shri Giradhar Vachanamrit Bhag - 2  by चन्द्रशेखर श्रोत्रिय - Chandrashekhar shrotriy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भगवान के समीप कौन ? धभ्गवान का दरबार बडा विशाल है। उस दरबार में सभी जोव समाम है। वहाँ न कोई ऊँचा हैं ओर न कोई नीचा। उसका द्वार सभी के छिये खुला है।” ये शब्द थी दाता ने शिवरात्रि के पर्व पर जिज्ञासु लोगो के बीच कहे । दिनाक १४-२-८० को शिवरात्रि के अवसर पर अनेक लोग विभिन्न स्थानों से श्री दाता के दर्शनार्थं दाहा निवास मापे थे! उन्होने वहाँ सत्संग और कीर्तन का षूब भानन्द लिया । जिज्ञासु लोगोनेश्ची दाता से उख समय अनेक प्रश्न किये 1 उने प्राशनों में से एक प्रश्न था - जिज्ञासु---- भगवान के दरवार में नजदीक कौन है ? गरीब सजदीक है या अमीर। उसके दरबार में कौन ऊँचा है घ कौन नोचा है १ 9 श्री दाता----“भसगवान का दरवार साधारण सा दरबार तो है भही । उसका दरबार तो बनोखा हो है। वहां तो जो उसका वन कर रहता है वही नजदीक है। जो प्राणी अपने मन का वन कर रहता है अर्थात्‌ मन के कहे-कहे चलता है वह भगवान से दूर है। मनृष्य का अहकार गौर सुख, उसको भगवान से दूर ले जाता है। अहकार रहित होकर जो उसका बनता है उसके लिये वह निकट हैे। जो अमीर अपने घन के मद में अन्धे होकर रहते हैँ उनके लिये भगवान को पाना सभव नहीं । कारण, उतको तो घन का आध्य है। उनको भगवान के आश्रय की भावश्यकता ही नहीं है। इसके विपरीत गरीब को तो एक मात्र भगवान का ही सहारा होता हैं। गरीब सेव हो अभावो से प्रस्त रदा है, अत उसका जीवन दु खो से परिपूर्ण रहता हैं। दुख में एक मात्र भगवान ही सच्चा साथी होता है॥ दुख मनृष्य वो भगवान वो निकट ले जाता हैं। “भगवान का दरबार वड़ा ही विचित्र है। वहाँ ऊँंच-नोच का कोई भेद भाव नहीं । वहाँ सभी का प्रवेश है। आज घिवरात्रि का




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