श्री महामण्डल डाइरेक्टरी | Shri Mahamandal Dairektari

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Shri Mahamandal Dairektari by श्रीयुत गोविन्द शास्त्री दुगवेकर - Shriyut Govind Shastri Dugavekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध्मंखरड 1 ५ न পা পা योग तथा पृष लग्नमें द्वापरकी उत्पत्ति होतो है। इसका प्रमाण र६४००० चर्षोका तथा इसमें दो अवतार होते हैँ । यथा--कृष्ण और पोद्ध। #इस युगर्मे पुरएय १० तथा पांप १० होते हैं। मनुष्यकी आयु ६००० वचर्षोंक्नी तथा शरीरप्रमाण ७ दाथका होता है। उनके पात्र ताँबा' और हृव्य चांदी होता है। रक्तमें इनके प्राण र्द्ते हैं और নী दुरुक्तेत रहता है। सर्यश्रदण ३६०० और चन्दुग्रहण २००००० दोते हैं। बीज चपन १ और छेद्न ३ दोता है । सच पंच , दोते हैं । चन्द्रवंशीय राजा होते हैं। यथा--सोम, बुध, तड़ाग, पुरुरव, अंगद, पाणडु, युधिष्ठिए, अज्जञुन, अभिमन्यु, परीक्षित, जनमेजय,, देवलण्ड, सहनाम, जीवशम्सु, बेणु , विश्वरूपाद्‌ | सब विष्णपूजक होते हैं। बचनही प्रमाण रहताहै। लोगध्नीदोतेदै। ` । फलियुग | : भाद्र कृष्ण घयोदशी रविधारके दिन अधेरानिम आशलेपा नक्तच व्यतीपात योग और मिशुत्र ग्नके उद्यमें फलियुगक्ती उत्पत्ति होती है। इसकी आंयु ४३२००० वर्षोंकी होती है। इसमें कल्कि अचतार होता है। पाप १५ और पुणय ५ होता है। महुष्यायुवेल १०० चर्षे तथा शरीर साढ़े तीन द्याथका होता है। मिह्तोके पात्र रहते हैं और » डइेड्डियोका व्यापार होता है। कूद द्वृव्य रहता है और घूतोकी पूजा , होती है । प्राण श्न्नमय होता है शरोर तीं गंगा रहती ह ! बीम चपन ९ श्रौर छेदन १ होता है । प्रसव सातत दोता है घोर राजा घधर्म-कर्म- , रहित होते हैं। मिथ्याका अधिकतर प्रचार होता है ओर ाद्यणगण » छुमार्मी हो जाते हैं। आजतक इस फलिकोी आझु ५०३० चर्षे बीत चुकी है। झसी ४२६६७० घर्ष और रहेगी । । कलिका खरूप तथा सादार्य । , कल्लिं पिशाचकी तरह वदन तथा कूर रौर कलदग्रिय होता है ॥ यह वार्ये हाथसे अपनी इच्चिय और दद्दिने हाथसे जिला पकड़े हुए रहता है। इसके प्रसावसे मनुष्यको देवतामें भक्ति नहीं रदवा है « और कपरट वेषधारी तापस होते हैँ । मजुप्य मूठ बोलते दै মা জী আঁ হীনী ই। লীন সজল र्द्ते दै ओर सजा नीच নী ই। শশী পাপী লি ~~~ 9 ০৪ ১০৪৯ ০৪ ^ ९५ भगवान्‌ गोतस बुद्धने अपने आपको सप्तम छुद्ध माना है। एस कारय इस , बैद्धाववारफा प्रथस पुद्धापतारसे सम्बन्ध है। पेसा साननेसे ज्योतिषयाखका विरोध ক ৯৯ « জা হালা।




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