एक महान नैतिक चुनौती | Ek Mahan Naitik Chunaoti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उन्ककं के घाद प्राणरक्षा के लिए मनुष्य वहुधा अतिरिक्त श्रम करने को तैयार हो जाता है । ৮ यहाँ वो राष्ट्र-का-राष्ट्र जीवित रहने के संकल्प से प्रेरित हो इतना श्रम करनं में जुटा हुआ था, जितना साधारणत: मानवी क्षमता से परे हूँ । इंग्लेण्ड की रक्षा का श्रेय इंग्लिश चंनेल, चचिल और ब्रिटिश हवाई- सेना को है । चचिल के भाषणों ने जनता में कार्य करने की प्रेरणा भरी । _ चूंकि श्राजकल की शासन-संस्थाएँ पहले की शासन-संस्थाओं से अधिक ादित- शाली होती हैं, इसलिए उनमे उन महान्‌ पुरुषों की तुती बोलती है जिनके हाथों में अत्यधिक श्रधिकार होता है और जिनका जनता पर प्रदुभुत प्रभाव भा होता हैं । तानाञाही देशों में उन महान्‌ पुरुषों का प्रभाव उनके अ्रधिकार के कारण पड़ता है, कितु जनतन्त्री राष्ट्रों में उन्हें अपने प्रभाव के कारण अधिकार प्राप्त होता है और वे उस अधिकार का प्रयोग अपने प्रभाव को वृद्धि में करते ह 1 च्िलने ब्रिटिश जनता को अपने उच्चतम स्तर तक पहुंचने में सहायता दी । छोटे-छोटे लोगों ने निराशा प्रकट की । कनंल चाल्त लिंडवर्म ने तो समभ लिया कि इंग्लेण्ड हाथ से निकल गया और उन्होंने इस पर शोक भी प्रकट नहीं किया । वीर मार्शल पेताँ को, जिनकी आत्मा भयातुर हो गई थी, फ़ांस या इंग्लेण्ड पर बिलकुल भरोसा नहीं था । फिर भी चचिल, रूज़वेल्ट और चार्ल्स डी गाल को इन पर विश्वास था और उनके साथ वलशाली हृदयवाले छोटे- छोटे लाखों व्यक्ति थे । डन्क्रके के चार साल बाद, ६ जून, १९४४ को ब्रिटिश सेना श्रमेरिक सेना के साथ फ्रांस में फिर उत्तरी और इस घटना के एक वर्ष पश्चात्‌ ही यूरोप में विजय-दिवस मनाया गया । ये पाँच वर्ष करोड़ों नर-नारियों श्लौर बच्चों के लिए रक्‍त-पात, भूख, ठढ और चिन्ता से भरे हुए वषं घे । मनुष्य भी दौसा अद्भुत श्राविष्कार है ! निस्संदेह वह उत्तमतर सौभाग्यका प्रधिकारी ह। मनुष्य कम-से-कम यृद्ध-विहीन पंसार का अ्रधिकासी श्रवध्य हूँ । में यूद्ध की भयंकरता को देख चुका था, इसीलिए प्रतिदिन प्रकाशित होनेवोली यूद्ध- विज्ञप्तियों को पढ़ते हो मेरी आँखों के सामवे गोलियों से क्षत-विक्षत घरीरों या जले हुए टेंकों और विमानों में लस हुए मनुष्यों के चित्र पिच जाते थे । जब विज्ञप्ति में लिखा होता दो हवाई जहाज़ वापस नहीं प्रा सके” तो मेरे मेधो के सामने नाच उठता १२ नवयूवकों की मत्य का दृश्य प्रौर उनके साय-साप १२ माता-पित्ताझों, १२ परिवारों शौर अनेक मित्रों का चित्र जो उस विन्नप्ति को सदा याद रखेंगे और जब कमी उन्हें उत्तकी याद प्रायगी तभी उसझा हृदय ने द शीतल और शिधिल हूं बंठ




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