यजुर्वेदभाष्यम् भाग - 4 | Yajurvedabhashyam Bhag - 4

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Yajurvedabhashyam Bhag - 4 by मद्दयानन्द सरस्वती - Maddayanand Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| एकज्रिं शोऽध्यायः ॥ पल वे ( तस्पात्‌ ) उस परमेश्वर से ( श्रनायन्त ) उत्पन्न हुए ( तस्मात्‌ ) उसी _ | से ( गाव) ) गोयें ( यह एक ओर दांत बालों का उपलक्तण है इस से अन्य । भी एक ओर दान बाले लिये जाने ह ) (ह ) निश्चय कर (जक्षिर ) उत्पन्न हुए ह हृए श्र ( तस्मात्‌ ) उस से ( अजावयः ) बकरी भेद ( जाताः ) उत्तन्न हुए ' हैं इस प्रकार जानना चाहिये ॥ ८ ॥ भावार्थः-हे मनुष्यों! तुम लोग गो घोड़े आदि ग्राम के सब पशु निस सनातन- ` पूर्ण पुरुष परमेश्वर से ही उतन्न हुए हैं उस की आज्ञा का उलड्घन মী মল करो ॥८॥ , ल यन्ञमित्यस्य नारायण ऋषिः पुरुषे दधता । निचदनुष्टुष्ठन्द्‌ः | गान्धारः स्वरः ॥ पुनस्तमेव विषयमाह ॥ फिर उसी वि० ॥ त॑ यज्ञ वर्हिपि प्राक्षन्पुरुपं जातमग्रतः । ते- न देवा अयजन्त साध्या ऋषयदच ये ॥ ६ ॥ तम्‌ । यज्ञम , बहिपिं । प्र ७ ओक्षन्‌ । पुरुषम । সা শীশ্াশীশশী শী শী পাপা ~-~-~----~-------------- -- ऋषयः । च । ये ॥ ९ ॥ पदार्थः-८ तम्‌ ) उक्तम्‌ ( यज्ञम्‌ ) संपूजनीयम . ( बर्हिषि ) मानसे ज्ञानयज्ञ ८ प्र) प्रकषण ( ओऔक्षन्‌ ) सिञ्चन्ति ( पुरुषम्‌ ) पूणम्‌ ( जातम्‌ ) प्रादुभरूतञ्जग- : त्कत्तरम्‌ ( अग्रतः ) सृष्टेः पाक्‌ ( तेन ) तदुपदिष्टन बे- देन ( देवाः ) विद्वांसः ( अयजन्त ) पूजयन्ति (साध्याः) साधनं योगाभ्यासादिकं कुवेन्ते ज्ञानिनः ( ऋषयः ) म- न्त्रथविदः (च) (ये)॥<€॥ ' 9




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