धर्माभ्युदय महाकाव्य | Dharmabhyuday Mahakavya

Dharmabhyuday Mahakavya by मुनि पुण्य विजय - Muni Punya Vijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाबू श्री बहादुर सिंहजी सिंघी ~ स्मरणाओलि ६ १९ तेमणे मध्यप्रांतोमां आवेलां कोरीयां स्टेटमां कोलसानी खाणोना उोगनो पायो नांस्यो अने बीजी तरफ दक्षिणना शकति अने अकल्तरानां राञ्योमां अविली चूनाना पत्थरोनी खाणोना, तेम ज वेढगाम, सावंतवादी, इचलकरंजी जेवा स्थानोमां आवेली “बोकसाइट” नी खाणोना बिकासनी शोध करवा पा पोतानु ত্য परोब्युं, कोल्साना उद्योग अर्थ तेमणे জলজ डालचंद बहादुरसिंह' ए नामथी नवी पेढीनी स्थापना करी जे आजे हिंदुस्धानमा एक अग्नगण्य पेढी गणाय छे, ए उपरांत तेमणे बंगालना चोवीस परगणा, रंगपुर, पूर्णया अने मादहा विगेरे जिष्रामोमा, महोरी -मीनदारी पण खरीद करी अने ए रीते ब॑गाटना नामाकित जमीनदारोमा परण तेमणे पोतानुं खास स्थान प्राप्त कयू, बावू डालचंदजीनी आवी सुप्रतिष्ठा केव व्यापारिक क्षेत्रमां ज मयादित न्होती. तेस पोतानी उदारता अने धार्मिकता मटि प्रणएटल ज सुप्रसिद्ध हता - तेमनी परोपकारप्रत्ति पण तेटली ज प्रशंसनीय हती. परंतु, परेपक्रारसुलम प्रसिद्धिथी तेओ प्रायः दूर रहे- ता हता. घणा भागे तेओ गुप्तरीते ज अर्थिजनोने पोतानी उदारतानो लाभ अप्रता तेमणे पोताना जीवनमा लखोनु दान कर्यु हशे पण तेनी प्रसिद्धि के नोध तेमणे भाग्ये ज करवा इच्छी शे. तेमना सुपुत्र জানু নী वहादृर सिहजीए प्रस मोपात्त चचा करतां जणाव्युं हतुं, के तेजो जे काई दान आदि करता, नेनी खबर तेमने पोताने (पुत्रने) पण माग्ये ज धती, आशी तेमनां जाहेर दानो अगेनी मात्र नीचेना २- य प्रसमोनी ज माहिनी मछ जक्ी नती. सन १९२६ मा शचित्तरजन' सेवा सदन माटे कलकत्तामा फाछो करवामा आव्यों द्यारे एक वार खुद महात्माजी तेमना मकाने गया हता अने ते वखते तेमणे वगर माग्ये ज महात्माजीने ए काये माटे १०००० रूपिया आप्या हना. १९१७ मां कलकत्तामा गवन्मट हाउस'ना मेदानमां, छों> कामोइकलना आश्रय नीचे रेडरक्रीरा मारे णक मेक्रावडो थयो हतो तेमां तेमणे २१००० रूपिया आप्या हता, तेम ज प्रथम महायुद्ध बखते तेमणे ३,०००,०० रूपियाना “নাহ बेण्डस्‌” खरीद करीने ए प्रसगे सरकारने फाछामा मदद करी हती, पोतानी छेद्ठी अवस्थामा तेमणे पोताना निकट कुटरंबीजनो - के जेमनी आर्थिक स्थिति बहु ज साधारण प्रकारनी हती तेमने-रूपिया १२ छाख ब्हेची आपवानी व्यवस्था करी हती जेनो अमल तेमना सुपुत्र बाबू बहादुर [सदजीये कर्यो हतो. बाबू डालचंदजीनुं गाहंस्थ्य जीवन बहु ज आदशरूप हतुं- तेमना धर्मपत्नी श्रीमती महकुमारी एक आदश अने घर्म- परायण पन्नी हता. पति-पन्नी बने सदाचार्‌, खविचार अने मुसस्कारनी मूर्तिं जवा हतां. उालचदजीनुं जीवन बहु ज सादुं अने साधुत्व भरेटं हतुं. व्यवहार अने व्यापार ब॑नेमां तेओ अयत प्रामाणिक अन नीतिपूर्वैक वर्तनारा লা. মান বীজ खूब ज शान्त अने निरमिमानी दता. कानमार्मं उपर तेमनी ऊडी श्रद्धा टती. तच्व्ानविषयक पुस्तकों वाचन अने श्रवण तेमने अलं॑त प्रिय हतु. দিল নহাহ कोलेजना एक अध्यात्मलक्षी बगरी प्रोकेसर नामे वाव ब्रजटार अधिकारी - जेओ योगविषयक प्रक्रियाना अच्छा अभ्यासी अने तत्त्वर्चितक दता - तेमना सटवासथी वावू डाल चंदजीने प्रण योगनी प्रक्रिया तरफ खूब रुचि थईं गई हती अने तेथी वेमणे तेमनी प्रासेथी ए विषयनी केटछीक खास प्रक्रियाओनो ऊडो अस्यास पण कयो हतो. शारीरिक स्वास्थ्य अने मानसिक पावित्यनो जेनाथी विकास थाय णवी, केटलीक्र व्यावहारिक जीवनने अदलयंत उपयोगी, यौगिक प्रक्रियाओनो तेमणे पोताना पन्नी तेम ज पत्र, पुत्री आदिने पण अभ्यास करवानी प्रणा करी हती, জন धर्मना विशुद्ध तत्त्वोना प्रचार अने स्वोपयोगी जेन साहिलयना प्रसार मादे पण तेमने खास रुचि रहेवी हती अने पंडितप्रवर श्री सुखलालजीना परिचयमा आन्या प्री, ए कायं माटे कारक विशेष सक्रिय प्रयल्न करवानी तेमनी सारी उत्कंठा जागी हती. कलकत्तामां २-४ लखना खर्च आ कायं करनारू कोर साहिलिक के चक्षणिक केन्द्र स्थापित करवानी योजना तेभो विचारी रह्या हता, ए दरम्यान सन्‌ १९२७ (वि, सं. १९८४) मा कलकत्तामा तेमनो खर्गवास थयो, नर क खबू डाल्चंदजी सिंघी, पोताना समयना वंगालनिवासी जेन समाजमां एक अंत प्रतिष्ठित व्यापारी, दीघेदर्शो उद्योगपति, म्होटा जमीनदार, उदारचित्त सदुगरहस्थ अने सा ` सपूरुष हता. तेओ पोतानी ए स्वै संपत्ति अने गुण- वत्तानो समग्र वारसो पोताना एक मात्र पुत्र बाबू बढ।दुर सिंहजीने पता गया, जेमणे पोताना ए पण्यश्छोछ पितानी स्थूल संपत्ति अने सूक्ष्म सतकी्ति- बंनेने घणी सुंदर रीते वधा।राने पिता करताय सवाई श्रष्ठता मेछ॒ववाब्ग 1, ऐ प्रनिष्ठा प्रात करी, वाच श्री बहादुर सिंहजीमा पोताना पितानी व्यापारिक कुशकता, व्यावहारिक निपुणता अने सास्कारिक सन्निष्ठा तो संपूणे अशे वारसागतसरूपे उतरेटी हती ज, परंतु ते उपरात तेमनामां बौद्धिक विशदता, कलात्मकं रसिकता अने विविधं विषयम्राहिणी प्राज्ञल प्रतिभानो पण उच्च प्रकारनो सन्निवेश थयो हतो अने तेथी तेओ एक अएाप्परम न्यनि, व र।वनार महानुभावोनी पंक्तिमा स्थान प्राप्त करबानी योग्यता मे्वी शक्या हता, तेजो पोताना पिताना एकमात्र पुत्र होवाथी तेमने पिताना विदाठ कारभारमा नानपणथी ज लक्ष्य आपवानी ०: पडी हती अने तेथी तेओ हाईस्कूलनो अभ्यास पूरो करवा सिवाय कलिजनो विशेष अभ्यास करवानो अवसर मेढछवी शकक्‍्या न हतां. छतां तेमनी ज्ञानरचि ब्रहु ज तीत्र होवाथी, तेमणे पोतानी मेठे ज, विविध प्रकारना साहित्यना वांचननो अ»्यास | 8/1.) / 1 19-1.5-1 + 09६2८ ॥५०11१ ५६




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