हिंदी काव्य की भक्तिकालीन प्रवृत्तियों और उनके मूलस्रोत | Hindi Kavya Ki Bhaktikalin Pravartiya Aur Unke Mool Sharot

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्नाशयी शाखा या रन्‍त काब्य [२३ कारण जिनका मेल करते निगु श॒ पथ चला है। उसे किसी म बेढान्त तप का अययत्र श्रधिक्त मिलेगा, कसी में योगियो के साथना तत्व का, किसी मे यफ्या के मधुर प्रेम तच का और किसी में व्यायद्वारिक इब्पर भक्ति ( कर्त्ता, पिता, प्रभु की भायनसा से युक्त )का। निगुण प्रथमजो योता हूत ज्ञान पन्न हैं, पद बेदान्त से लिया हुआ है, जो प्र म तच है, उट यृफिया का है, ननि कष्ण का | ' अद्दिसा? और “अ्रपत्ति? के अतिरिक्त कणवन्त का और कोट হা उसमे नहीं है | उसके 'मुरातिः और “मिरति? शब्द दैद्ध रिद्वो ऊँ । तौव धमः के अष्ठागमार्ग केअतिम मार्ग हैं ~. सम्यक्म्शत और सम्प्स्ममाधि प्सम्यक्स्मूति” प्रह्द दशा हैँ तिसम नण क्षण पर मिटनेयात्ता ज्ञान ग्थिर हो जाता है और उसका श॒खला বন जाती है, अतः 'धु॒राति! 'निरति! शब्द योगिरों की यानियों ने ग्राए द्वैप्या मे उनका कोट मम्बन्ध नही ।# লল জা में ऐसे इश्पर का कायना की गई है, जो सुनलमाना तथा हिन्दुआ ऊ धर्म मे समान रूप से ग्राह्म दो सर | वर रूप कुरूप रहित है। यद्‌ एक ६, व सर्यराक्तियय, শব व्यापक एर त्रलण्द ज्योति स्यरूप है। उसे समभने पे लिए आत्मशन का आयश्यक्ता है । वारय मेद्श्यए्के इस रुप का प्रचार द्िन्दुता और मुसलमानों की सस्कृति ने मिश्रण से टुआ | इस सम्प्रदाय में जद्मा एक और अयतारगढ़, मूर्ति पूजा तथा तीर्कत आद्ि का লিহীঘ हैं, वहा दूसरी आर नमाज, रोता आ्रार दलाल आदि का भी निधयर है। छूमकाश्ड के अन्तर्गत जितने बाह्याडम्थर हें रूप उपम्दित हा सकत हैं, सतमत मं उनका बहिष्कार रूप तरह से कया गया। उास्वत् में चिए ओर मुसलमान दोनों के धर्मों सम तिन कं काणठों के द्वास নিলা 25 सकला यी, उमका परद्टिप्कार आउश्यक सममभा गया | उन्म दथा काव्य दद्यर ठ तापकिस्वस्प আর্য হী লালা কলা ₹ 0 विचारधारा और पौद्धिक गयेपणा + লিল বাহ न्न्य नस्ल म त श्य्राचाय' शुक्दा का “हिन्दी बाद्िय वादन शन्न तथा ६३ देखिये




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