आधुनिक कवि पन्त-टीका | Adhunik Kavi Pant-Tika

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Adhunik Kavi Pant-Tika by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
२७ “আবু” की वालिका दो पक्तियौ का, 'सरलपन ओर निरालापन' का, फिर कान, जजान का, सहज सजा सजीला' का, 'सुरीले ढीले' का, अधर और अधूरा का, (लचका, विकच ओर वचषन' का, पन ओर मन' का, दिपी-प्ती पी-सी' का, 'दिपी-सी' से लेकर तीन पक्तियो तक की सी-सी की ध्वनि का, 'रगीले गीले' का स्वाभाविक अनुप्रास कितनी मब्र घ्वनियों के सगीत की सृष्टि कर रहा है ? ३--उसके उस . था पाया-रब्दार्थ--कल सुन्दर । अवत्तरिणका--ऊपर की परवितर्यो मे कवि भै वालिका के शिशु-सौन्दर्य का वर्णन किया है । सवं अग्रिम নিজ मे यह्‌ वताया दहै कि उसकी स्वयं पर क्या प्रति- क्रिया हुई और कैसे वह्‌ उसकी बोर आक्ृष्ट होता गया । कवि कहता है कि मैने उस वालिका के सरलपने से अपना हदय सज्यया था । उसकी सरलता और उसका भोलापन मेरे हृदय में व्याप्त हो गया। मैने भी उसको अपनी भोर आकृष्ट करने के लिए मधुर-मधुर सगीतो से उसके हृदय को प्रोत्साहित किया था । उसको अपनी कल्पना को कल्पलता कहकर उसके साथ आत्मीयता का सम्बन्ध स्थापित क्रिया था । कल्पना में जो जैसा और जितना सौन्दर्य हो सकता ঘা उतना और देसा ही मैंने उस बालिका मे प्राप्त किया था। इसीलिए उमे मपताया था । उप्तमे नवीन-तवीन भावनाओ का पराग भी प्राप्त किया था । ३--मैं मन्द हास-सा .. आया-मेरी और उसकी इतनी घनिष्ठता हो गई कि मैं उसके कोमल अधरो पर मंडराया, जिस प्रकार उसकी निजी मुसकान उसके भधरो परे मेडराती है) उसके मुख की सुन्दर युगन्बि से मैं नित्मप्रति उसके अधिकाधिक निकट खिचता चला आया । १--कवि ले “मैं” मू्ते का उपमान अमूर्त हास रखा है । २--मेंडराया, सुरभि से खिच आया, पराग पाया” आदि प्रयोगों से भेवर- फूल के रूपक की ओर भी सकेत हो रहा है। भ्लमर और पुण्प-वाटिका के पक्ष में सी इन पक्‍क्तियों का अर्य स्पष्ट रूप में व्यक्त हो रहा है । ৬ ७--आऑसु” की बालिका अवतरणिका--पद्‌ कविता आसु शीर्षक कविता का अवामात्र है। “आँसु” में वस्तुत कवि के हृदय के अविश्ल आँसू सचित है और इसमें कवि की अस्तवेंदना मुखर हौ गदु ३, इस अश्च मे केवन वालिकाके सौदयं-पारावार का चिन्तन करना कवि का लक्ष्य है। उच्छ वास की जिस बालिका का वर्णन पूर्व कविता में हुआ है, उसी से सम्बद्ध यह कविता भी समझनों चाहिए। कवि को कल्पनामयी उत्त मानवी मूर्ति बालिका के वियुर वियोग में ही कवि के ये आँसू है । १--एरू यौणा = आभमार--शब्दारय-चितवन = चचन्‌ दष्ठिपात ! सुवामय == अगृतमय । उपचार्‌ कष्ट निवृत्ति का उपाय या आपय! अआभारन=एटूमान ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now