मिश्रबन्धुविनोद [भाग-3] | Mishra Bandu Vinod [Part 3]

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Mishra Bandu Vinod  [Part 3] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुलाल ] परिवत्त न-प्रकरण । १०८१ नाम-(9 ७८४) चन्द्‌ कवि सवत्‌ १८९० के छगभग धे । खाई फोई एन्द्रे शाहजद्ांगीर के समय का समभते हैं नाम-- १७८५ ) मास्यामी गुलाललछाऊछ, उन्दावनवासी; अनन्य सम्प्रदाय चाले । ग्रन्थ--ग्रलन्यस्तयापरडरू । कदीता-कालू--संवत्‌ १८०२ । विवरण--पहले पूजा इत्यादि का वणेन किया | उसके पीछे साल भर के उत्सव कहे हैं। भ्रन्थ ७०० इलेकें के बराबर है। यह्‌ दमने दरबार छतरपूर में देखा। काव्य इसका निम्न श्र णी का है। समय जाँच से मिला है। নাল € १७८६) उम्ादास | ग्र्थ--१९ महासारत भाषामाला (१८९४७), २ कुरुक्ष त्माहादय (१८९४), ३ नवरल, ४ पंचरल, ५ पंचयज्ष । कविता-फाल--१८९४ । विवरण--महाराजा करणसिंह पटियालानरेश के यहाँ थे। इनकी कविता साधारण भ्रणी की है। उदाहरण । रूपाह के पाराधार शुत्र जाके हैं अपार, सुन्दर विहार मन हार है उदार है। जाके बल के निहार चीर ना धरे संभार, मरिन की नार वेग चदरत पहार है॥ श्री शुर गाविन्द्‌ सिंह सादृ वैस महा बाहुः . बार बार सेवक का खदा रलवार है 1.




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