पउमचरिउ | Paumchhriu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
268
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तियारीसमो संधि ५
उसने शम्बूकङ्कमारका सिर काट डाखा है ओर बलपूवेक उसने
देबोंसे सूयहास खड॒ग छीन छिया है । उसीने चन्द्रनखाका यौवन
कलंकित किया | जिससे रोती-विसूरती हुई बह, जय छच्ष्मीसे
विभूषित खर और दृषणके पास आई। तब उन दोनोंने आकर
छ्मणसे युद्ध ठाना । परन्तु उसने तत्काख इनके दो टुकड़े कर
दिये । इतनेमे अमषसे भरकर किसीने रामकी पत्नी सीता देवीका
अपहरण कर लिया । पक्षिराज जटायुने पीदा किया । परन्तु उसे
भी मार डाछा । युद्धका कारण यही हे” ॥१-६॥
[ ३ ] युद्धकी हालत सुनकर सुप्रीथ इस चिन्तामें पड़ गया
किं क्या वह् उनकी ( राम-छक्ष्मणकी ) शरणमें चछा जाय | हाय
विधाता तूने केवल मुझे मौत नहीं दी ? इस अवसर पर मैं किसे
स्मरण करूँ | क्या हनुमानकी शरणमें जाऊँ। परन्तु वह भी
शत्रुको नहीं जीत सकता । उल्टा मैं निरख कर दिया जाऊँगा |
क्या रावणसे जभ्यथना करं । नहीं नहीं । बह मनका छोभी ओर
खीका कपट है । वह हम दोनों (असो ओर नकली ) को
मारकर राज्यसहित स्रीको भी ग्रहण कर लेगा । अतः खर-दूषणका
मान सदन करनेवाले राम और लक्ष्मणकी शरणमें जाना ही ठीक
है । यह सब सोच-विचारकर किष्किन्धापुर नरेश सुमीवने मेघ-
नाद दृतकों पुकारा, और यह कहा, “जाकर विराधितसे कहो कि
सुप्रीव शरणमे आ गया है । इस प्रकार प्रिय बचनोंसे उसने
दूतको विसर्जित किया । बह दूत भी मान और मत्सरसे रहित
होकर गया | पाताल लंका नगरमें प्रवेशकर, उसने अभिवादनके
साथ, विराधितसे पूछा, सुताशको लेकर मायासुमीबसे पराजित
असी सुग्रीव आपकी शरणमे आया है । उसे प्रवेश दूँ या
नहीं? ॥१-१२॥
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