महुए का पेड़ | Mahuye Ka Ped

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Mahuye Ka Ped by बद्रीविशाल - Badri Vishal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बहू ने बच्ची को दूध पिला कर जूते पहना दिये और उसकी अंगुली पकड़ कर बाहर निकलीं, तो मनोहर दरवाज़े पर जल्दी-जल्दी रोटियाँ निगल रहा था | उसका मन फिर उदास हो गया और वह बच्ची के লন नन्‍्हें सुकुमार पाँवों में बंधे जूतों को देखता रहा । “--जहू जी कल सुत्रह चली जाएँगी, और बच्ची भी और उसका जूता भी ।|--मनोहर रात सोया, तो उसके मन में यही ख़याल था। ब्रगल में बच्ची के जूते पड़े थे ओर मालकिन सो रही थीं। मनोहर बार- बार जूतों को देखता ओर उसका मन सोचने लगता,--यदि रात भर में मैं बड़ा हो जाता, तो बहू जी के साथ ही कलल दिष्टी चला जाता और पैसे कमा कर अपने लिए लाल-लाल जूते खरीदता । रात बढ़ती जा रही थी । चारों ओर सुनसान, पर मनोहर को नींद कहाँ ! बस, बहू जी के जाने की बात उसके मन में जैसे पैर तोड़. कर बैठ गयी थी और वह बार-बार जूतों को देखता। उसने हाथ बढ़ाया, जूतों को खींचा ओर पास रख कर देखने लगा,--कितने सुन्दर हैं ये लेकिन कल से ये मुझे सपने हो जाएँगे |--वह उलट कर, उन्हें आगे ज्ञमीन पर रख कर देखना चाहता था, क्योंकि ऐसे देखने में उसे जूते उठाने पड़ते थे और बहू जी के जगने का डर उसे बराबर बना हुआ था | वह उल्लट ही रहा था कि पानी भरे लोटे में घक्का लगा और उस पर रखी हुईं तश्तरी ऋनभना कर गिर गयी | उसने जल्दी से जूता रख दिया पर बहू जग रही थीं। इसलिए कुछ बोलीं नहीं, चुपचाप कभी मनोहर को, कभी बच्ची को, कभी पूरे घर को और कभी चाँद ओर दिल्ली की सड़कों आर इमारतों को देखनेलगती थीं। लेकिन मनोहर और उसके हाथ, उसकी बेचेनी और जूते, सब जैसे रात के सफ़ेद रंग में मिल-जुल कर एक में सन जाते थे । मनोहर सोचते-सोचते सो गया था, पर उसका हाथ जूतों पर टिका हुआ था, जैसे कोई सूम अपने धन को या कोई प्रेमिका अ्रपने प्रेमी को अपनी छाया में बाँध लेना चाहती है। 18 महुए का पेड़




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