खुदा सही सलामत है | Khoda Sahi Salamat Hai
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
326
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रवींद्र कालिया -raveendra kaaliya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छुदा सही सलामत है | 13
कि पंडिताइन किसी तरह सिविल लाइन्स पहुँच कर उसका रतुवा देख ले।
मगर पंडिताइन वहुत धीमे-धीमे चल रही थौ ! वसो का গুলা सीधा उसके
दिमाग में घुस रहा था। पंडित गर्देत घुमा कर वार-वार पंडिताइन को देखता
और उत्तकी इच्छा होती कि पंडिताइन को भी वच्ची की तरह कांधे पर बैठा
कर ले भागे । चौ राहे के पास पहुँच कर वह खड़ा हो गया और अपनी वच्ची
को गा-गा कर समझाने लगा -
লাল बत्ती देखो, तो मोटर को रोको
हरी वत्ती देयो तो मोटर चलाओ
बच्चों का यह गीत वह चतुर्वेदी जी के बच्ची को गाते हुए सुन चुका था ।
हरी बत्ती हुई तो पंडित ट्रैफ़िक के साथ-साथ भागा । पंडिताइन ने पंडित को
अचानक भागते हुए देखा तो वह भी उसके पीछे भागी ) चप्पल उतार कर
पंडिताइन ने हाथ में थाम ली और किसी तरह अपनी जान बचा कर चौराहा
पार किया । पंडित ही ही कर हँसा । उसके बड़े-बड़े दाँत ऐसे लग रहे थे
जैसे धृंह के भीतर सीग उग आये हो 1
“यह सहर है सहर ! यहाँ सुस्ती से काम नही चलता। एक मिनट की भी
कोताही हुई नही कि बन्दा सोधा भगवान जी के पास”, पंडित ने सामने सिनेमा-
घर देखा तो बोला, “तुमको एक दिन सिनेमा भी दिखाऊँगा। वह देखो सामने,
कभी देखा है सिनेमा ? धर्मद मीर शर्मीला टैयोर । और ऊपर देखो सामने ।
रेल का पुल । नीचे से बसे गुजर रही हैं और ऊपर से रेल गाडियाँ | अब
सिविल लाइन दूर नहीं। बस पुल पार किया और तत्तियाँ देखते-देयते
पहुँच गये ।”
सिविल लाइन तक पहुंवते-पहुँचते पंडित की साँस फूल गयी थी। वैते
वह रोज ही पैदल आता जाता था मगर आज मारे उत्तेजना के उसके पैर
ज़मीन पर नही पड रहे थे । उसने दूर से ही पंडिताइन को दिखाया--बह
देखो फव्यारा । पडिताइन की समझ में कुछन आया। वह अपनी पुरानी
रफ्तार से उसी प्रकार चलती रही | कोंठरी पर पहुँचते ही पडित ने चाबी
लगा कर कोठरी खोली, वत्ती जलाई और ज्योही पडिताइन ने कोठरी में
कदम रखा पंडित ने स्विच ऑन कर दिया | पंडिताइन ने पलट कर देखा,
चौराहे पर फब्पारे की नन्ही-नन््हों बूँदें छोटे-छोटे बल्वों के रंग में रंग गयी
थी। पंडिताइन हल्के से मुस्करायी । उसे यह सब बहुत अच्छा लगा, जादुई।
बोली, 'एक बार वन्द करके फिर से चलाओ । ”
पंडित ने फौरन आज्ञा का पालन किया। पानी की फुहार एकदम बैठ
गयी । चौराहे पर सन्ताटा खिंच गया। पंडित हे-हे-हे करके हँसा और उसने
User Reviews
No Reviews | Add Yours...