खुदा सही सलामत है | Khoda Sahi Salamat Hai

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : खुदा सही सलामत है  - Khoda Sahi Salamat Hai

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रवींद्र कालिया -raveendra kaaliya

Add Infomation Aboutraveendra kaaliya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
छुदा सही सलामत है | 13 कि पंडिताइन किसी तरह सिविल लाइन्स पहुँच कर उसका रतुवा देख ले। मगर पंडिताइन वहुत धीमे-धीमे चल रही थौ ! वसो का গুলা सीधा उसके दिमाग में घुस रहा था। पंडित गर्देत घुमा कर वार-वार पंडिताइन को देखता और उत्तकी इच्छा होती कि पंडिताइन को भी वच्ची की तरह कांधे पर बैठा कर ले भागे । चौ राहे के पास पहुँच कर वह खड़ा हो गया और अपनी वच्ची को गा-गा कर समझाने लगा - লাল बत्ती देखो, तो मोटर को रोको हरी वत्ती देयो तो मोटर चलाओ बच्चों का यह गीत वह चतुर्वेदी जी के बच्ची को गाते हुए सुन चुका था । हरी बत्ती हुई तो पंडित ट्रैफ़िक के साथ-साथ भागा । पंडिताइन ने पंडित को अचानक भागते हुए देखा तो वह भी उसके पीछे भागी ) चप्पल उतार कर पंडिताइन ने हाथ में थाम ली और किसी तरह अपनी जान बचा कर चौराहा पार किया । पंडित ही ही कर हँसा । उसके बड़े-बड़े दाँत ऐसे लग रहे थे जैसे धृंह के भीतर सीग उग आये हो 1 “यह सहर है सहर ! यहाँ सुस्ती से काम नही चलता। एक मिनट की भी कोताही हुई नही कि बन्दा सोधा भगवान जी के पास”, पंडित ने सामने सिनेमा- घर देखा तो बोला, “तुमको एक दिन सिनेमा भी दिखाऊँगा। वह देखो सामने, कभी देखा है सिनेमा ? धर्मद मीर शर्मीला टैयोर । और ऊपर देखो सामने । रेल का पुल । नीचे से बसे गुजर रही हैं और ऊपर से रेल गाडियाँ | अब सिविल लाइन दूर नहीं। बस पुल पार किया और तत्तियाँ देखते-देयते पहुँच गये ।” सिविल लाइन तक पहुंवते-पहुँचते पंडित की साँस फूल गयी थी। वैते वह रोज ही पैदल आता जाता था मगर आज मारे उत्तेजना के उसके पैर ज़मीन पर नही पड रहे थे । उसने दूर से ही पंडिताइन को दिखाया--बह देखो फव्यारा । पडिताइन की समझ में कुछन आया। वह अपनी पुरानी रफ्तार से उसी प्रकार चलती रही | कोंठरी पर पहुँचते ही पडित ने चाबी लगा कर कोठरी खोली, वत्ती जलाई और ज्योही पडिताइन ने कोठरी में कदम रखा पंडित ने स्विच ऑन कर दिया | पंडिताइन ने पलट कर देखा, चौराहे पर फब्पारे की नन्‍ही-नन्‍्हों बूँदें छोटे-छोटे बल्वों के रंग में रंग गयी थी। पंडिताइन हल्के से मुस्करायी । उसे यह सब बहुत अच्छा लगा, जादुई। बोली, 'एक बार वन्द करके फिर से चलाओ । ” पंडित ने फौरन आज्ञा का पालन किया। पानी की फुहार एकदम बैठ गयी । चौराहे पर सन्‍ताटा खिंच गया। पंडित हे-हे-हे करके हँसा और उसने




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now