दिगम्बर जैन सिध्दांत दर्पण ए.सी. 4973 | Digamber Jain Sidhant Darpan Ac 4973

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[8] परन्तु वर्तमान साहिल-प्रसार एक ठेसी शङ्कत खोज हे जो अ्रन्वेषक खोजी बिद्यानका पारिडिल प्रदर्शन करनेके साथ समाज को भी समालोचक कोटिमें खींच-ले जाती है। और वहां स्व- बुद्धि-गम्य तकं-वितर्फां के प्रवा मै श्राद्धिक भावों कौ इति श्री हो जाती दै। इस प्रकार की खोज से कोई भी व्यक्ति. रत्नत्रय की सांधना में लगा हो अथवा देव-शास्त्र, गुरु-भक्ति ओर उनकी पूजा आदि धार्मिक क्रिया-काण्ड में अधिक रुचिदान बना हो, ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिलेगा। प्रत्युत उससे रल्नन्नय की विराधना तथा जिन मन्दिरनिर्माण, बिम्ब प्रतिष्ठा विरोध, मुनियोंमें अभ्द्धा आदि अनेक उदाहरण उपस्थित हैं । | इतिहास की खोज भर शासन-मेद का नया मिशन बतेमान में इतिहास-खोज का एक नया आविष्कार हो रहा दै। वर्षों समय ओर बहु द्रव्य-साध्य सामप्री तथा शक्ति का उपयोग इसी ऐतिहासिक खोज में लगाया जा रहा है। यह खोज-विभाग, एक नया मिशन दै। इस मिशनका उदेश्य यदी प्रतीत होता है कि जो ्राचायं अथवा शाख इनके मन्तव्य के बरिरोधी द्यो उन्हें अप्रमाण ठहरा कर श्रमान्य ठहराया जाय । इसी लस्य के श्चाधार पर अनेकः आचार्यो को अमान्य ठदराने क बिफल चेष्टाएं भी की गई है । अमान्य ठदराने की यष्ट नीति रक्ली गह दे कि अमुक अआचायं अमुक के पीछे हुए ह अथवा अमुक सदी मे हुये ई ।




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