श्री भागवत दर्शन भागवती कथा (खण्ड - 42) | Shri Bhagwat Darshan Bhagvati Katha [ Khand - 42 ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रासेश्वर की रासेच्छा
[ €५६ ]
अगवानपि ता गात्रीः शरदोत्फुल्लमल्लिकाः ।
वीक्ष्य रन्तु मनश्चक्रे योगमायाम्ुपाशितः ॥&
(श्री भा० १० स्क० २६ झ्र० १ श्लोक )
छप्पय
ब्रजबनितनि अनुराग नपत्लमहँ नित नव विकसत ।
गिरघर नटबर नाम सनत अतिशय हिय हुलतत ॥
ग्रयम ख्रवन- फ्रेंसि गये नयन प्रनि भये पराये।
मन अटक्यो लखि रूप जगत् के काज गुलाये ॥
नाम श्रवन पूनि दरश करि, चित्त पर्त हित ভি गयो।
प्रस पाह पुनि केलि हित, सुरति माव जायत मयो ॥
प्रेम का पथ बड़ा ही अटपटा है। प्रेस सनके अनुकूल मार्ग है ,
संस्तार में ऐसा कोई नहीं है, जो प्रेम न चाहता हो,' जिसके मन
में प्रेम करमे की अभिलापा न.हो। प्रेम कोई अपरिचित बस्सु
नहीं है। प्रम को सभी जानते हैं। पशु-पक्ती, कोट प्रतंग प्रेम
करना तो सभो जानते हैं | अन्तर इतना द्वी है, एक नित्य से
य ५. नि 2७. শি भरि ০২
प्रेम एक अनित्य से प्रेम । एक बिम्ब से प्रेम एक प्रतिविम्ब से
ক্ষ श्रीशुकदेवजी कहते हैं--“'राजन् ! भगवान् मे भी शरद ऋतु की
उम्र रात्रिपों को देखकर जिनमें मल्चिकरा के कुछुम खिले हैं मोगमाया
“का प्राश्षप लेकर रमण करने की इच्छा की 17
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