कर्त्तव्य शास्त्र | Kartavya Shastra

Kartavya Shastra  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) पचुंचे, तो बच जल्दी २ सुरब्वा खाने लगेगा, पर ग्रपनो इच्छा सन्तुष्ट करने के बाद ही द्वाथ पोछते हो पोछते, अपनो करनो पर यह जानकर पछतावा करने लगेगा कि सत्य - शोलता, जिस को उसने तोड़ दिया है, उछ कज्षुधा स्रे नीच हैं, कि लिघको उसने सन्तुष्ट किया है । अधीर लड़का अपनो अधीरता से छलभ्ाये हये नख या वंसो की तरगी को तोड़ कर अपने को असत्काये का अपराधों न समस्केगा । पर यदि वद्द अपना ओोध अपनो वहिन पर उतारे कि जिससे उसका कोई भंग फूट जाय और वह रोती सिधारे, तो तुरतद्दी वह पछतावे में पड़ेगा कि स्नेह, जिसका उसने अपमान किया है, उस क्राध से कह्दीं श्रेष्ठ है, ज्ञिसको उसने सन्तुष्ट किया है। प्यासा पथधिक जंगल में खोजते २ किमो भरना को पाकर विना सममे নু ঘালী দীন लगेगा, पर यदि उसका समो हाफता भौर प्यास से मर रहा हो तो उसके मन में यद्द बांत आवेगी कि छपा दया से बढ़कर नहीं है ्रोर अतएव वद्र ठंडे पानो का कटोरा पद्िले दूसरी के मुख में लगावेमा । इन अवद्याओं में यदि एकहो चित्तसस्कार उपस्वित होता तो विना समझे वूक्े वह भनुष्यों से अपनोद्दी इच्छा पूरी करवाता, पर ज्योंहीं दूसरा भी उसी समय आकर उपस्थित होता है त्योहदों ये दोनों द्वी भ्पने २ सापेक्ष स्थान पर प्राप्त होते हैं। इस थिपय में चितसंस्कारों का निकटव- त्तित्व और वैपरोत्य, इन दोनों का होना आवश्यक है इससे अधिक की आवश्यकता नहीं है, ओर इसघे कस से काम नहों चलेगा । इम लोग दोनों चित्तसंस्कारों का अनुसरण नहों कर सकते हैं; और न स्ख के खत्व और स्थान में संदेह भी कर सकते है । उनका सदसदाचार विषयक मोल उनके सस- काछोन दर्शन से ही तत्काल निथ्य हो जाता है । 2৩৩৫০ ২




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