मदनपराजय: | Madanaparaajay

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Madanaparaajay by प्रो॰ राजकुमारों जैन - Pro. Rajkumaro Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) विभिन्न अन्थकारों द्वारा दोनों में समान अनुकरण हो सकता है। ऐसी दशा में अभो इस सम्भावने को पुष्ट करने के लिए समथ प्रमाण अपेक्षित है | प्रो० राजकुमारजो परिश्रमी, दृष्टिसम्पन्न तथा उत्साही युवक विद्वान्‌ हैं । उनके द्वारा सम्पादित यह ग्रन्थ उनकी प्रतिभा और परिश्रम का अच्छा उदाहरण है। उनसे आगे भी ऐसे ही अनेक ग्रन्थों के सम्पादन की आशा है। भारतीय ज्ञानपीठ के संस्थापक भद्रचेता साहु शान्तिप्रसादजी ने अपनी स्व° मातेश्वरी के र्मरणाथं जो “मूतिदेवी जैन ग्रन्थमाल।” स्थापित की है उस ग्रन्थमाला के संस्कृत विभाग का यह प्रथम অন্ধ ই | साहुसा० की जेनश्रद्धा, जेन संस्कृति के उद्धार की अभिलाषा ओर उसके सौरभ का स्व॑र प्रसार सभी अभिनन्दनीय दँ । उनकी समखूपा धर्मपत्नी सो० रमाजी का उत्साह, कार्यप्रेरणा एय साहित्यिक सुरुचि इस ज्ञानपीठ की अमूल्य निधि है । इस उदीयमान समरूप दम्पति से अनेक एसे सांस्कृतिक कायं होने की आस्या है । अन्त में समाज के जिनवाणीभक्तों से निवेदन है कि वे अपने साहित्य के गोरव को समझ ओर उसकी प्रत्येक शाखा के जिस किसी भी भाषा में लिखे गए ग्रन्थों के उद्धारक प्रयत्नों में सहयोग ढ़, उनका भी यश्रेष्ट प्रचार करें जिससे ये प्रयत्न सोत्साह चलते रहें । भारतीय ज्ञानपीठ | -महेन्द्रकुमार जेन 4811 টি ग्रन्थमाला सम्पादक-संस्छृत विभाग प्रकाशन-व्यय ९००) छुपाई ३० फाम ३००) व्यवस्था ६००) कागज १५०) चित्र, कवर ६००) जिल्द ८००) भेंट आलोचना १०० प्रति ९००) सम्पादन २१०) विज्ञापन ৮০ ০) प्रफशोधन ५०० ०) कमीशन ४७००) ६०० प्रति छपी । छागत १ प्रति ९॥) मूल्य ८)




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