वसन्त | Vasant

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Vasant by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ हलो ”“, वसौलि कार्पोविच ने बृढे इवान से कहां , “कोट भी उतार डालो न!“ लडकिया फिर खिलखिलायी। “तुम लोग किसी को सोने भी नहीं दोगे?” दर- वाजे का सहारा लेते हुए इवान ने कहा। “यह भी क्‍या ्रहिया स्याल है किं माघी रात को लोगो को चारपाई से बुला मगागो 1” उसके बाद पाशा आयी । बह मशीन-द्रेव्टर स्टेशन पर काम करने वाली ट्रेक्टर ड्राइवर है और ऐसी तरोताज़ा दि- खायी दे रही थी मानो उसने चारपाई पर अभी पौर भी न रखा हो। “सब लोग आ गमे?” वसीलि कार्पोविच ने पूछा। “हा”, भेरे ब्रिगेड के चौडे कघोवाले लयोशा ने कमरे में घुसते हुए कहा, “जरा संक्षेप में।” “सक्षेप में ही कहगा,” वसीलि कार्पोविच ने बात शुरू की। “ साथियो , हम लोग बोआई में पीछे क्यो है? दिन भर में हम अपना कोटा आधा ही क्यो पूया कर पति हे? भाप लोग कर क्या रहे है? क्या हम जुन तक নীআাই करते रहेगे? क्या जनवरी में जाकर काटेगी? आप १९




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