राजनीति प्रवेशिका [भाग १] | Rajneeti Praveshika [Part 1]

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Rajneeti Praveshika [Part 1] by हेरल्ड जे. लास्की - Harold J. Laski

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| ११ राज्य-सस्था का स्वरूप कर सकने. जो राष्ट्रीय शिक्षा की पद्धति चलाने के लिए अपने ` सदस्यो पर कर नहीं लगाती दो । परन्तु डेढ शतात्दि पहले इस , वात की कल्पना तक नहीं हो सकती थी कि इस काम के लिए , किसी राज्य-संस्था को अपने सदस्यों को धन देने के लिए वाध्य | करता पडेगा। जो माँग उस समय आवश्यक हुई, वह कालान्तर ; में अनिवाय हो गई है। यह क्यो हुआ ? क्योंकि जो लोग राज्य-संस्था की सत्ता का संचालन करते हैं, उ्दोंने शिक्षा की राष्ट्रीय पद्धति की माँग की पूर्ति , करना आवश्यक या चुद्धिमत्ता-प्ण या न्याय-संगत सम जिया ই। परन्तु दमे इस वात का पता लगाना दं कि किसी विशेप समय ओर विशेष स्थान पर इस प्रकार की माँग क्यो सफल होती है । स्पष्ठत , इसका उत्तर यद्‌ नदी दौ सक्ता किं मोग उचित थी । राज्य-संस्था ने उचित मोँगो को कायान्वित करने से, वहुधा, इनकार कर व्या है, और ऐसी माँगो को स्वीकार कर लिया है जिनको वुद्धि थोड विचार से भी कभी उचित नदीं वता सकती । यद्‌ वात भी नहीं हो सकती कि उनके तत्व में बुद्धिमत्ता रदी है, क्योकि राजनीतिज्ञ लोग सदा बुद्धिमत्ता से दी काम नहीं किया करते। आवश्यकता का होना एक अधिक स्पष्ट कारण मालूम होता है । परन्तु, फिर हमें यह जानने की आवश्यकता है कि किसी विशेष समय और स्थान पर एक विशेष माँग ही राज्य-संस्था द्वारा क्यों आवश्यक समभी जाती है और दूसरी क्यों नही । जिन हेतुर से प्रेरित होकर राजनीतिज् लोग काम किया




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