कलावती शिक्षा | Kalavati Shiksa

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Kalavati Shiksa by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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পর্ণ ( ७ ) सात हज़ार प्राणी दो महीने में शीतला का भेद हो गए । सन्‌ १८६६ में यद्द रोग यहाँ देशव्यापी हुआ था । एक छोटे से सवे में मृत्यु-लख्या रिखी गई तो ज्ञान पडा कि दो लाख मनुष्य चेचक से मरे। टीका ज़ारी होने से पहले चेचक से बचने का उपाय यदद किया जाता था कि जिस क्सी मनुष्य फे चेचक निकलती थी तो घर और पडोलके लोग दानं की पीप का गोदना करा लेते थे । एेखा करने से उन सवके भी चेचक निकल आती थी 1 परन्तु, उसका ज्ञोर श्रधिक नदी होता था ! वंगाल ओर पहाड़ो इलाकों में ऐसे मनुष्य पाये जाते ह जिनके शरीर में चेचक के मबाद से गोदना किया गथा था। इस गोदने में उतनी ही चुराइयाँ थीं ज्ञितनी चेचक में। गोदने के बाद जब चेचक निकलती थी तो उससे भी वहुत, लोग लड, सूले, वहरे, काने या श्रन्धे दो जातेथे। जो ज्ञोग गोदना नहीं कराते थे उन में चेचक की छूत वड़े जोर-शोर से फैलती थी । ये सच वातं आजकल के टीके में नही हैं । टीका लगाए हुए बच्चे से चेचक का रोग घर में ओऔरों को कभी नहीं फैलता ओर न चेचक का निकलना दी श्राचश्यक दोता है। सम्भव है कि तुम यह भी न जानती हो कि चेचक है क्या वला ? पेखे मनुष्य तो श्रवश्य देखे दौगे जिनके चेहरे चेचक के दांगों से विचित्र बने हुए हो, परन्तु, चेचक का वीमार कोई भी न देखा दोगा। क्योकि श्रव हमारे घर मे सव दी टीका कराये हुए हैं और जो नहीं कराये हैं उनके चेचक एक वार निकल




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