व्याख्यान वाटिका | Vyakhyan Vatika
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं नटवरलाल के. शाह - Pt.Natvarlal K. Shah
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दानवीर श्रीमान्
सेठ श्री सरदारमलजी पुगलिया
८ &
का
स।क्तिक फरिचय
শা 8 শশী
विश्व असीम और अनादि है। उसमें अनगिनते मनुप्य प्राणी
समय २ पर जन्म धारण करते रहते हैं, मगर बहुत कम को छोड़ कर
अधिकांश मनुष्य प्राप्त हुए सवॉत्कृए मानव जीवन को उस जीवन की
रक्षा में ही व्यतीत' कर देते हैं । वे जीवन रूपी पूंजी को जरा भी नहीं:
बढ़ाते, बल्कि उस पुजी का उपयोग कर के अगले जीवन को और अधिक
दरिद्न बना लेते हैं। कई प्राणी अपनी दिव्य शक्तियों का उल्टा उपयोग
कर के सर्वश्रेष्ठ मानव जीवन को सवं निष्ट जीवन बना डालते हैं।
इनके जीवन का मुख्य ध्येय सांसारिक आमोद प्रमोदों को अधिक से
अधिक प्राप्त करना होता है ! और वे व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ती में
ही संलग्न रहते हैं । ऐसे सल्नष्यों का जीवन या तो निष्फल हो जाता है
था विपरीत फल्टायी सिद्ध होता दै । समाज देश या संसार की उपयो-
गीता की दृष्टि से उनका अस्तित्व नहीं के समान है ।
इससे विपरीत छुछ मनुष्य ऐसे होते है, जो परलोक से एक अच्छी
पूजी लेकर भाते हैं, और इस लोक मे अपने सदनुष्टानों के द्वारा धसं
और समाज की वहुसूल्य सेवा कर के परोपकार में अपनी समस्त शक्तियों:
का व्यय कर के, सब प्रकार से अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं से विसुख
होकर समाज और घर्म की आवश्यकताओं की पूर्ती को ही सदा सन्सुख
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