हिंदी ही क्यों ? | Hindii Hii Kyon ?

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Hindii Hii Kyon ? by पं चन्द्रगुप्त वेदालंकार - Pt. Chandragupt Vedalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) (घ) कनाड़ी--रवि आकाश के भूषणं, रजनिगं चन्द्रं महाभुषणम्‌ | कुर वश क भूषणं, सत्िगे पातित्रत्यवे भूषणम्‌ । हवि यज्ञाडिके भूपरणं, सरसि अम्भोजाहगड़ भूषणम्‌ । कवि श्यास्थानक भूषणं, हरहरः श्रीचन्न सोमेश्वरः ॥ (ङः) तामिल--श्रीरामर मिथुलिमा नगर चेण्डु शिवधनुपै श्रविशीघं बडेथु जनकपुत्रि सीता देव्ये विवाहं चेदु कोण्डार । प्रजेकल दम्पति कुल: अन्विहारं शेदनत्‌ | (च) बंगला-सुजलां सुफलां मलयजशीतलां मातरम्‌ । वन्दे मातरम्‌ । (घ) गुजराती-फगै खूने खूने जगत निरख्युं नेत्र सद्‌ ये। जरा व्याधि मत्युं त्रिविध बडले जीवमरतां | पणे बीजा जीवो उपर निभतां जीव निरख्यां । घ॒ुम्यां शान्ति र्थं वन वन तपो तीत्र तप्य ॥ पंजाबी--इक ओंकार सत्‌ नाम करता पुरुख निरपो निरवेर अकालमूरत अयोनि सो पंग गुरपरसाद । जप आदि सच युगादि सच है वी सच नानक हो सी वी सच । इन उद्धरणों को पढ़कर यह प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता कि सभी प्रान्तीय भाषाओं में सबनिष्ठतत्त्व संस्कृत है। प्रान्तीय भाषाओं में “संस्कृत शब्दों की मि तनी प्रधानता है इसे दर्शाने के लिये अग्रसिद्ध 'मुल्तानी? का यहाँ वणन किया जाता है-- शिर सिर कक्ष _कछ सन्देश सन्देस प्रभात प्रभात केश केस दुग्ध डुद्ध वेला वेला कुकुर कुकड्‌ विश्वास विस्वास जल जल नाग नाँग भ्रम भरम कल्याण कल्याण जंघा जंघ ब्राह्मण बाम्मण क्षीर छीर अक्ति छक्ख मलमूत्र मलमुत्र चम्बा अम्माँ सज्जन सज्जण काए काठ वाह वा लक्षण लच्छण . वज्च वख पत्र पत्र अमावस्या मावस्या पूर्णिमा पूणमाँ अन्नजल अन्नजल अन्तर क्र त्रय त्रय पञ्च पञ्च सप्र सन्त्‌ चन्द्र चन्द्र




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