सोवियत शासन का इतिहास भाग २ | Soviet Shasan Ka Itihas Vol- Ii

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Soviet Shasan Ka Itihas Vol- Ii by राहुल संकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ डाथों सें ( लेनिन ) संक्रांत करना चाहिये। पार्टी के लिये जो रास्ता लेना है, वह यह है कि समाजवादी क्रांति की तैयारी करना। पार्टी के तुरंत के काय्ये के वारे में लेनिन ने यह नारा रखा : “सभी शक्ति सोवियतों को !” “सभी शक्ति सोवियरतों को ।? इस नारे का मतलब यह था कि दोदरी शनि को खतम कर देना जरूरी है, दोहरी शक्ति की अस्थायी सरकार ओर सोवियत' में शक्ति का बँटवारा, और उसका अथे था सभी शक्ति को सोवियतों को दे देना, और जमींदारों तथा पूँजीपतियों के प्रतिनिधियों को सरका< की मशिनरी से निक्राल बाहर करना । कान्फ़ न्स ते प्रस्ताव पास किया कि पार्टी का एक अत्यंत महत्व पूर्ण काम है इस सच्चाई को अनथक हो जनता को समाना कि “अस्थायी सरकार अपने रूप में जमींदारों और बूज्वोजी ( वन्यो ) के शासन की एक मशीन है ।” ओर यह सी दिखलाना चाहिये कि समाजवादी क्रांतिकारियों और मेनशेविकों की सममोता वाली नीति कितनी खतरनाक है, वे जनता को क्ूठी प्रतिणओं छ्ारा धोखा देते रहे ओर साम्राज्यवादी युद्ध तथा क्रांति विरोध का निशाना वना रहे हैं । कान्फे नस सें कामेनेफ़्‌ ओर सइकोफ़ ले लेनिन्‌ का विरोध किया। मेनशेविकों को आवाज़ में वोलते हुये उन्होंने ज़ोर दिया कि रूस अभी समाजवादी क्रॉति के योग्य नहीं हुआ है, और रूस में सिफ़े चूज्वाँ प्रजातंत्र का होना ही सम्भव है। उन्होंने पार्टी और मजदूर- वर्ग से सिफारिश की कि अपने अस्थायी सरकार के “नियंत्रण” तक दी सीभित रखे । वस्ततः वे, सेनशेविकों की भाँति पूजीबाद और बृज्बोजी के शासन के कायम रखने के समर्थक थे । ज़िनोपियेफ़ ने भी कॉफ्रेंस में लेनिन्‌ का विरोध किया, इस अश्न पर कि बोलशेविक पार्टी को ज़िस्मेवेल्टि मण्डली के भीतर रहना चाहिये २ उससे निकल कर एक नया इन्टरनेशिनल ( अंतरो- ६




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