हिंदी विश्व - भारती खंड - 6 | Hindi Vishva Bhaarti khand - 6

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Hindi Vishva Bhaarti khand - 6 by भृगुराज भार्गव- Bhraguraaj Bhaargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आकाश की बातें सिद्धान्त के सच होने का एक पक्का प्रमाण माना जासकता है। उत्काति-स्तर के चठक रेखाओंवाले बणपट की सूद्धम जाँच से इसका भी पत्ता चलता है कि बह स्तर कितना मोटा है ओर किसी विशेष मौलिक पढार्थ की वाप्प प्रकाशमंडल के ऊपर कहाँ तक फैली हुईं है। इस प्रकार पता चला है कि केल्शियम की वाष्प लगभग पॉच हजार मील ऊँचे तक फेली हुई है। तारों के वर्णंपट सूर्य के वर्णंपट का अध्ययन बहुत सूक्ष्म रूप से हो सका है, क्योंकि सूर्य का प्रकाश बहुत प्रचड है ओर उसका वर्णपट बहुत परिवद्धित पैमाने पर देखा जा सका है। परन्तु तारों के वर्ण॑पटों से भी पर्याप्त ज्ञान-प्राप्ति हुई तारों को ऐसे समूहों में बॉँटा जा सकता है, जिनके बर्णंपटों में क्रमानुसार धीरे-धीरे अंतर पड़ता है। उदाहरणतः, प्रथम समूह में चटक रंगीन पृष्ठभूमि पर थोढ़ी-सी काली रेखाएं रहती हैं। इस काली रेखाश्रोंवाले वणेपट को 'शोषण वर्णुपण कहते हैं, वर्योकि ये रेखाएं, जेसा हम देख चुके हैं, श्रत्यंत तप्त उद्गम से आए प्रकाश के कुछ अ्रवयव की कम तप्त गेसो या वाष्पों द्वारा शोषण के कारण उत्पन्न होती हैँ। ये काली रेखाए शोषण रेखाएँ” कहलाती हैं | वर्शापट के अनुसार वर्गीकरण करने पर तारों के प्रथम समूह में शोपण रेखाए थोड़ी- सी ही रहती हैं श्रीर वे श्रधिकतर हाइड्रोजन श्रौर हीलियम से उत्पन्न रेखाएं होती हैं। ऐसे तारे देखने में कुछ नीले रंग के जान पढ़ते हैं | द्वितीय समूह में हाइड्रोजन की रेखाएं प्रमुख होती हैं और हीलियम की रेखाएं नहीं रहतीं। लोहा, कैल्शियम ओर ठाइटेनियम नामक धातुओं की रेखाएं भी कुछ-कुछ दिखाई पढ़ती हैं, पर वे हल्की रहती हैं। इस समूह के तारे श्वेत परतु नाम-मात्र के लिए नीलापन लिये हुए होते हैं। तीसरे समूह के तारों में हाइडोजन की रेखाएँ फीकी ओर धातुओं की रेखाएं अधिक स्पष्ट रहती हैं। ये तारे देखने में श्वेत होते हैं । चौथे समूह में घातुओं की रेखाएं और भी स्पष्ट हो जाती दै । इनका वणंपट बहुत-कुखं सौर वर्णुपट-सा होता है । देखने में ये तारे कुछ पीले जान पडते ई है। विशेष बात यह देखने में आई है कि त স্কিন পোপ সস জপ পাপা যা কা এপ পাস টিপা भ~ चूत [१ ८ ক | ^ क এ নি मे, ৫৬১, রদ, जोज़ेफ़ फ्राउनहो फ़र जिसे वर्णपट की 'क्राउनद्वोफ़र 35 রি रेखाएँ? नामक काली रेखाएँ. हैं| अधिक तापक्रमवाले तारों में वे धातुए खोजने का श्रेय प्राप्त है । र्ठ पाँचवे समूह के वर्णपट में काली रेखाएं” पतली और प्रथक-पृथक्‌ रहने के बदले कहीं-कहीं एक-दूसरे में सटकर मोटी से जाती हैं। ऐसे वर्णपट को (म॑डेदार यणंपट' कते ह । ये गडे तत्त मौलिक पदार्थो के वदले कुखु त्त योगिक पदार्थों से--जैसे ठाइटेनियम ऑक्साइंड से--उत्पन्न होते हैं। इस समूह के तारों के वर्णपटों में केल्शियम की रेखाएं बहुत प्रमुख होती हैं । देखने मे ये तारे ललछोंह ( हलके लाल या नारगी रग के ) होते हैं । छुठवें समूह में योगिक्रों के शोषणु-गडे अधिक प्रमुख हो जाते टै | ऐसे तारे देखने में लाल होते हैं । पाठक जानते होंगे कि किसी भी धस्तु के तापक्रम कों धीरे-धीरे बढ़ाने से वह पहले गहरा लाल, तब चदक लाल या नारगी रण का, फिर पीला और ! अंत में श्वेत रंग का हो जाता है। तापक्रम को इससे भी अ्रधिक बढ़ाने पर रण निल- छोंह हो जाता है ओर उसके बाद नीला- पन अ्रधिक बद जाता है। इसलिए स्पष्ट है कि ऊपर का वर्शंपटानुसार वर्गीकरण वस्तुतः घठते हुए तापक्रम के अनुसार লা करण है । ८ ¢ | है नः ् ६ ( ग्रपेन्षाऊत निम्न तापक्रमों पर योगिक कनन ( क ४ न রি पदार्थ टिकाऊ रहते हैँ ओर हमें उनका है... चर्रापट दिखाई पढ़ता है। ज्यों-ज्यों तापक्रम बढ़ता जाता है त््यो-त्यों यौगिक पदाथ नष्ट होते जाते हैं और मूल धातुएँ रह जाती मी नहीं रद्द पाती, केबल हाइडोजन और हीलियम या केवल हाइडीजन ही रह जाती है । तारों के तापक्रम वर्शपट का कौन-सा भाग सबसे अधिक चमकीला है; यह देखकर प्रकाश के उद्गम-स्थान का तापक्रम भी बताया जा सकता है। कम तापक्रम पर वर्णंपट का लाल भाग सबसे अधिक चटक रहता है। जेसे-जेसे तापक्रम बढतो है, तेसे-तेसे महत्तम चमकवाला भाग वर्णपट के नीले खंड को ओर खिसक जाता है। महत्तम चमक पर ध्यान देने से; और ज्ञात्त तापक्रमों से निकले कृत्रिम प्रकाशो के अध्ययन तथा गणित आदि के आधार पर, हम तारों के तापक्रम भी जान सके हैं। इस श्रध्ययन से प्राप्त सामग्री के आधार पर अनुमान किया गया है कि पूर्वोक्त वर्गीकरण और तापक्रेम में निम्नलिखित संबध होगा }- - “ - -




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