महावीर - वाणी | Mahavir - Vani
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand): { १७ |
सन्यासी, भि, क्षपण, अमण के लिये भी अधिकाधिक मात्रा में;
उन अवच्छेपों को दिन दिन कम करते हुए, पर्मोपयोभी ह, जन धद
सवथा लमयों (शर्तों ) से अनवच्छिन द्वो जाते हैं; तन “ मदामत ??
शे सथः भोक्च के ३९ देते दै |
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५डवन्जिथा पच मटन्वयाणि, चरिज्न धई जिणद् सिय विदू
` धभ्मह्ुस -करणेक र्
आह्षण सूजाप्याथ के भ1१ वैसे ही हैं, जैसे महाभारत के शांति-
पर में कहे हुए भायः बीस इस्णेकों के हैं, जिनमे से अत्येक के
अन्तिम सन्द यद् ई, तं ठन आक्षर विद | অন্ন में भी
5৫ প1ই79 অহী 2 में ऐस ही भाव के स्मकं |
न जदाहि न थोत्तहि न जच्चा दोति माक्षणों;-
यम्हिसच्प च पन््मो व, सो छुनी) सो घ आक्षणो |:
, न चाह माक्षण भूमि योनिजण मज्िन्सभ्मवे,
অন্ষিএলপপাথানঠ নই গুলি দাগ | ( घम्मपद)
८ महावीर-वाणी ? में कह। है,
अलोडप, मुह्ाीषि 'अणगाई अंकिषन/ 2 ४
अससत्त गिह्त्येसु, তর ৭৭ ও ৮15৩ 1 -
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