नरेश मेहता के साहित्य में सांस्कृतिक बोध | Naresh Mehata Ke Sahitya Me Sanskritik Bodh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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प्म्बन्ध मानव-जी वन और मानव व्यवहार कै र आवश्यकं नैतिक मूल्यो से है ।
भारत ध्म प्राण देश है।यहा' कि नियो, प्ाड्, कृं
पहु-पशुओं आदि में धर्म पानी में मित्री की तरह धुल-मलं गया है । उस वेश
के किती भी अश ये चाहे वड राजनीति ही क्यों न हो हटाया नही जा
सक्ता । केले के स्तम्भ की पर्तोंकी तरह देश की प्रल्येक पर्त॑ में ठयापक अर्थ में
धर्म साई देगा । देश की संस्कृति का आन्तरिक निर्माण - काव्य, सगीत,
नृत्य, चित्रकला धर्म से बनता है । देश की सास्कृतिक पहचान घामिक काठ्य ग्रथ -
वेद , उपिधदृ्, रामायण , महाभारत, राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर,
राम्कृष्णा परमहस, विवेकानन्व, महात्मा गाधी, कोणार्क, खजुर, अजन्ता
ताज महल, भज्, तानसेन, हरदास, क्नाटकं संभीत, भरतनाट्यम, अडिषौ ,
कृचिपुदी , क्थक्लौ , कल्थक आदि को हटा देने पर देश की पहचान क्या बनेगी
अर्थात ध्म भारतीय संस्कृति की अत्मा है? कहना न हग कि समस्त
क्लाधिक्ल साषठित्य ओर कलार धर्म से अनुप्राणित है । धर्म अनुभूति है, स्वेदना है।
धमनुमूति का वैसा ही महत्व है भसा काव्यानुभूति का । सास्कतिकं सुद
के लिए वीनों गै सस्त कृत है ।
ससार क আন यँ सक्ता कैसे लायी जाय हसका समाधान
अज तकं नही हौ सका । प्राची नकाल म॑ अनेक लीग यह मानतेये-किजौ ध्म
सर्वोत्तम ही, संसार भर के लोगों को उसी घर्म में दीचियत हो जाता चाहिए ।
893 ॐ० मँ शिकागौ ( अमएका ) में जो विश्व धर्म सम्मैलत हुआ था । उसका
भी आशय यही था कि सर्वोत्तम धर्म कौन सा है, हसका 1निणय कर लिया जाय
किन्तु विवैकानन्व के विचारों से सभी प्रतिनिधि चमत्कृत ही उठे । उन्होंने
कहा {किं + याँवि कोई ठयाक्ति यह समकाता हैं कक घारमिक एकता का मार्ग
আট ও ডিক त न न (जाः कक वनि
| साले রাহি ছা বি রাজ ওটা নাভী অর তত রি চা রিট ডি
बन्धु ? तुम्ठारी आशा पूरी नहीं होगी । क्या मैं यह सोचता हूं कि सभी ईसाई
शः ता थ सम বত ডিজি ও স্তর ভি टर कि
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