मणि - दीप | Mani Deep
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
95
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बन्धनमुक्तः
के लिए धन भी उपाजित कर छेती है, फिर भी सुरेश के बन्धन
में पडी वह नीरस दिन व्यतीत कर रदी है । यह सब उसे असह्य
हो गया था।
उस दिन से आपस मेँ अनवोका था । सुरेश आकर अपने
कमरे मे चखा जाता ओर नीला अपने कमरे मेँ रहती ।
सुरेश की मानसिक व्यग्रता इतनी बद् गयी थी किरात
कोरी ओंख कट जाती । प्रभात की सफेदो में वह अपनी आँखों
की लालिमा धो देने का प्रयल्न करता । यह सब जानते हुए भी
नीखा अनजानसी बनी थो । कटुता के पौधे पनपने लगे ।
अन्त में अपने निश्चित निणय की सूचना देने के लिए सुरेश
अधरात्रि के समय नीला के कमरे में गया। नीला जागते हुए
भी सोई थी।
सुरेश उसके पलंग पर न बैठ कर पास में पड़ी एक कुर्सी
पर ही बेठ गया। रूम्प के धीमे प्रकाश में वह चुपचाप नीला को
देख रहा था । नीला ने एक ठण्ढी सास ली |
सुरेश ने कहा-सुनतो हो !
आश्चयं शो आकृति बनाते हुए नीला उठ बेठी। उसने
पुछा--कहिये ?
मैं इस समय तुम्हें इसी लिए कष्ट देने आया हूँ कि अब
और अधिक उलझन में तुम्हें नहीं रखना चाहता ।!
'केसी उलझन ¢
“मँ अब जा रहा हूँ । निकट भविष्य में छोटने की सम्भावना
भी नहीं ই। तुम्हारी इच्छा दो तो यहीं रहो नहीं तो अपने घर
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