जैन सम्प्रदाय शिक्षा | 1882 Jain Sampraday Shiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
766
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अध्याय ॥ ९
चाहिये, किन्तु उन में शड्ढा नहीं करनी चाहिये || यह सन्धिसूतरक्रम से प्रथम चरण
समाप्त हुआ ॥
यह प्रथम अध्याय का व्याकरण विषय नामक दूसरा प्रकरण समाप्त हुआ ॥
तीसरा प्रकरण ८ व॑णैविचार ).
१---भाषा उसे कहते हैं जिसके द्वारा मनुष्य अपने मन के विचार का प्रकाश करता ই]
२--भाषा वाक्यो से, वाक्य पदों से ओर पद अक्षरों से बनते हैं ॥
३- व्याकरण उस विद्या फो कहते है जिसके पढ़ने से मनुष्य को शुद्ध २ बोलने
अथवा लिखने का ज्ञान होता है ॥
४--व्याकरण के मुझ्य तीन भाग है--वर्णविचार, शब्द्साधन और वाक्यविन्यास ॥
७५--वर्णविचार में अक्षरों के आकार, उच्चारण और उनकी मिलावट जादि का वर्णन है॥
६---शब्दसाधन में शब्दों के भेद, अवस्था और व्युत्तत्ति का वर्णन है ॥
७--वाक्यविन्यास भे शब्दों से वाक्य बनाने की रीति का वर्णन है ॥
व्णविचार ॥
!---अक्षर-शब्द के उस खंड का नाम है जिस का विभाग नहीं हौ सकता ॥
२--अक्षर दो प्रकार के हेते है खर और व्यज्ञन ॥
३--खैर उन्हें कहते हैं जिनका उच्चारण अपने आप ही हो ॥
४--खरोंके हख और दीप ये दो भेद है, इन्हीं को एकमात्रिक व द्विमत्रिक भी कहते दै ॥
५--व्यज्ञन उन्हें कहते है जिनका उच्चारण खरकी सहायता बिना नदी दो सकता ॥
६---अनुखार और विसगे भी एक प्रकार के व्यज्ञन माने गये है ॥
७--किसी अक्षर के जागे कार शब्द जोड़ने से वही अक्षर समझा जाता है। जैसे क वा
ककार इत्यादि ॥
८---जवतक खर किसी व्यज्ञन से नही मिलते तबतक अपने असली खरूप में रहते हैं
परन्तु मिलने पर माज़ारूप में हो जाते हैं. जेसे कृ+भ-क, कू+इ-्कि, कु+उन्कु
হি, জাতি ॥
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१. यद्यपि यह प्रकरण वर्णेविचार नामक है तथापि उसका प्रारंभ करने ते पूव व्याकरण की कुट माब
इक चक्ति प्रथम दिखाई गई ६ ॥ २--खथ राजन्त इति खराः॥ ३--अन्वगू भवति व्यक्षनम् ॥
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