श्रीमद राजचंद्र | Shreemad Rajchandra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
974
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-खूची
पत्रक पृष्ठ
३८१ आत्माका धर्म আলাম ইত
ध्यान देंने योग्य बात ३५५
३८२ ज्ञावी पुरुषके प्रति अधूरा निश्चय ३५६
३८३ सच्ची ज्ञानदशासे दु खकी निवृत्ति ३५६
३८४ सवके प्रति समष्टि ३५७
३८५ महान् पुरुषोका अमिप्राय ३५७
३८६ बीजज्ञान ३५८
३८७ सुधारसके संबंधर्म ३५८-९
३८८ ईब्वरेन्छा और यथायोग्य समझकर मौनभाव ३६०
३८९ ¢ आतममावना भावता ” ३६०,
३९० सुघारसका मादास्य २६१
३९१ माथाओंका शद्ध অধ ३६१
३९२ स्वल्प सररु है ३६१
হও নাঁ वर्ष
३९३ शालिमद्र धनामद्रका वैराग्य ३६२
३९४ वाणीका संयम ३४२
९५ चित्तका संकषेपमाव ३६२
२३९६ कविताका आतमाथेके ভি आएराघन ३६१३
३९७ उपाधिकी विशेषता ३६४
३९८ संसारस्व॒रूपका वेदन ३६४
३९९ सब धर्मोका आधार शांति ३६४
४०० कमके হীরা बिना निद्ृत्ति नहीं ३६५
४०१ सुदर्शन सेठ ३६५
४०२ ^ िक्षाप्नः ३६५
४०३ दे प्रकारका पुरुषायै ३६५
४०४ तीयैकरका उपदेशा ३६६
४०५ व्यावहारिक प्रसगोकी चिन्न-बिचित्रता ३६७
४०६ षट्पद २३६७-९
#४०६ (२) छह पद ३६९
४०७ दो प्रकारके कर्म ३७०-१
४०८ सारम अधिक व्यवसाय करना
योग्य नहीं ३७१
#४०८ ( २,३,४ ) यह त्यागी भी नहीं ३७२्
४०९ महस्थमे नीतिपूवक चलना ३७२
४१० उपदेशकी आकाश्चा ३७३
४११ । योगवासिष्ठ ` ३७३
४१२ व्यवसायकोीं घढाना ३७३
४१२ वैराग्य उपदामकी प्रषानता ই
उपंदेशशान और सिद्धातशान ३७४-५
५४१३ (२) एक चेतन्यमे सप्र किस तरह घटता दै १ ३७५
५
पत्रांक पृष्ठ
४१४ साधुको पत्र समाचार आदि लिखनेका
विधान ३७६-९
४१५ साधुकों पत्र समाचार आदि लिखनेका
विधान ३१७९-८१
४१६ पंचमकाल--अखयती पूजा ३८२
४१७ नित्यनियम ३८२
४१८ सिद्धातवोध और उपदेशवोध ३८३-५
४१९ संसार्म कठिनाईका अनुमव ३८६
४१९ ( २ )मात्मपरिणामकी स्थिरता ३८६
४२० जीव और कमका संबंध ३८६-७
संघारी ओर सिद्ध जीवोंकी समानता ३८७
#४२० ( २.) जैनदर्शन और वेदान्त ३८८
४२१ वृत्तियोके उपशमके लिये निद्वत्तिकी
. आवश्यकता ३८८
४२२ ज्ञानी पुरुषकी आश्चाका आराधन ३८९
अशानकी व्याख्या ३८९-९०
#४२९ (२) “नमे जिणाणं जिदभवाणे” ३९०-१
४२३ सुध्ष्म एकेन्द्रिय जीवोके व्याघातसंबधी प्रश्न॒ ३९१
४२४ वेदात ओर भिनसिद्धातकी तुलना ३९२
४२५ व्यवसायका प्रसंग ३९१
४२६ सत्संग-सद्दांचन १९३
४२७ व्यवसाय उष्णताका कारण ३९३
#४२८ सहुरुकी उपासना ३९४
४२९ सत्तंगर्म भी प्रतिबद्ध बुद्धि ३९४
४३० वैराग्य उपशम आनिके पथात् आत्मके
रूपित्व अरूपित्व आदिका विचार ३९४
४३१ पत्रलेखन आदिकी अशक्यता ३९४
४३२ चित्तकी अत्यिरता ३९५५
बनारसीदासको आत्मानुभव ३९५
ग्राख्षका वेदन ३९६
४३३ सत्युरुषकी पहिचान ३९७
४२४ पद आदिंके बाँचने विचारनेमं उपयोगका
अमाव ३९८
४३५ बाह्य माहास्यकी अनिच्छा ३९९
धिद्धौकी अवगाहना ३९९-४००
४३६ वैश्य-वेष और निग्नेन्थमावसवेंधी विचार ४००
४३७, व्यवह्गारका विस्तार ४०१
#४३८ समाधान ४०२
५४३९ देम ममलतवका अभाव ४०२
४८० तीन वाका सयम ४०
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