अपूर्व रत्न | Apurva Ratna

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Apurva Ratna by जगदीश नारायण मिश्र -Jagdeesh Narayan Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बुद्धि द्धि एक अद्भुत शक्ति है जिस के बल से विषय विचारे जाते दै इस कै विकाश भी अनेक धकार से हो सकते हैः; यथा अबोध बालकों को माता उन्दः मामा, चाचा इत्यादि कह कर पहचान कराती हैं। दो और दीन कायो पांच होता है, गुरुजी इस को सिद्ध करते हुए चाढूक के जी में प्रमाण द्वारा विश्वास करा देते हैं । जितना योग्य तथा परिश्रमी शिक्षक बारूक को मिलेगा उतना ही उसको बुद्धि बढ़ सक्केगी। चालरूक के प्रति यदि कोई कहानी कही जाय तो घह भी उसे दोहराने की चेष्टा करेगा, विशेष रटने से वुद्धि श्रष्ट होती हे। विद्यार्थी की चुद्धि अधिक वाड़ना से भी नष्ट हो जाती है । रक्षक को चाहिये कि वाकक को सदा उनके किये हुए कार्यों की भलाई बुरा स्पष्ट रीति से समझा दें। उन के हृदय में इस बात को अड्डित व कर देने और केचल दण्ड देने से कोई শাক ग्द, ॥] 5 ५ ५ ध




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