एक लोटा पानी | Ek Lota Paani

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Ek Lota Paani by श्रीपारसनाथ सरस्वती - Shreeparasnath Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ एक लोटा पनी मक्त--माया बन रही है परमात्मा और परमात्मा बन रहा जीवात्मा | हाय, अव कैसे कल्यान होगा | इतना केकर वह कट-पुटकर रोने लगा । उसके नयं भिराम नयनोंसे मोती-मगाछाओंका निर्माण होने छगा } राजाने निच किया--- लड़का पागल है | उतरकर राजाने उस लड़केको अपने पीछे घोड़ेपर बैठाकर अप महलकी राह टी । (३) राजधानीके बाहर, पूर्वमेँं काछी माताके मन्दिरपर আও मारी भीड़ ह्यो रही है । चार पण्डित प्रातःकाल्से हवन कर रं है । दोपहरीके एक बजे एका सुन्दर छड़केका बलिदान होगा | ल्डके-ख्डकी नरनारी समी आ रहे हैं | पुलिस सबको गो चक्करमें बिठा रही है । पुलिस कहती थी--“शोर দল करो, राजा साहब पधार रहे है ।› ठीक बारह बजे एक वंद पालकी आयी | हाथमे नंगी तद्‌ लिये राजा साहब उतरे, हाथ-पैर बभा एक ठडका भी पाठकीसे उतारा गया | दोनों आकर हृवनके पास--काछी माताके सामने खड़े हो गये | छोगोंने उन दोनोंकों देखा । मास्टर दत्तात्रेयकों देख सब चकित जर सम्मोहित हो गये | ब्रह्मा, विष्णु और शझ्टर---तीनोंके आशीर्वादसे भक्तजीका जन्म हुआ था | माताएँ कहने ढर्गीं--भगर भेरा बच्चा होता तो राजाकी दाढ़ीमें दियासलाई ढगा देती । दब




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