श्री अम्बालाल जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ | Shri Ambala Lal Ji Maharaj Abhinandan Granth

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Shri Ambala Lal Ji Maharaj Abhinandan Granth by विविध लेखक - Various Writers

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) पूज्य श्री मोतीलालजी महाराज बडे तेजस्वी वक्ता और प्रमावद्ाली आचाय॑ थे और गुरुदेव श्री बराबर उन्ही ই की सेवा मे बने रहे । राम की तरह पूज्य श्री थे तो गुरुदेव हनुमान की तरह केवल सेवा मे रहे । जैसे सेवा ही हनुमान का परिचय है । ऐसे ही गुरदेव का मी जीवन परिचय का शब्द केवल सेवा' है। घटनाएँ जो बनती हैं वे सीघी स्वामी के साथ जुडती जाती हैं, सेवक का तो केवल सेवा ही कंत्तव्य बना रहता है । घटनाओ की विविधता नही होने पर भी मुझे मेरे सम्पक में आने परव की तया वाद की जितनी बातें भिली बिना किसी भवतिकयोक्ति के ययासेमव तटस्य साव से लिख देनें का प्रयास किया है । मुझसे पूव की जो घटनाएँ हैं, उन्हे पाना बडा कठिन रहा । प्रवतक श्री ने कमी मी एक साथ बैठकर अपना परिचय देने का प्रयास ही नही किया । कई वार पूछने पर और कई तरह के प्रसगण चलाकर कुछ वातें निकलवा पाया । इन सारे कारणों से जीवनवृत्त मे वैविध्य और वैचित्र्य की कमी अवश्य है। किन्तु जितना परिचय दे पाया यदि पाठक उस पर भी ठीक-ठीक मनन करें तो उससे गुरुदेव श्री के अन्तर व्यक्तित्व का परिचय मिल सकता है। प्रस्तुत ग्रन्थ मे 'मिवाड और उसके दमकते हीरे” नामक जो द्वितीय खण्ड है, उसमे मेवा के सर्वागीण स्वस्प का परिचय देते हुए मेवाड़ सम्प्रदाय के पूर्वाचार्यों भौर विशिष्ट मुनियों का परिचय देने का प्रयास है । पूज्य श्री घर्मंदास जी महाराज के शिष्य श्री छोटे प्रथ्वीराज जी महाराज से इस परम्परा का सम्बन्ध है । मैंने बहुत प्रयास किया कि क्रमश जितने 'मुनि हुए! उनका ठीक-ठीक' परिचय मिले, किन्तु पूज्य श्री रोडीदास जी महाराज (रोडजी स्वामी) से पूर्व के केवल नाम मात्र उपलब्ध हैं और कुछ मी परिचय नहीं मिल पाया । श्री रोडजी स्वामी के वाद से अब तक का जितना परिचव पट्टावलियो, स्तवनों और अनुश्रुतियों के आधार पर मिला, वह ज्यो का त्यो दिया । जिसके जितने प्रमाण मिल पाये उन्हें भी ग्रन्थ म॑ उदघृत कर दिया है । इतिहास रखने की परिपाटी नही होने से आज हमें ऐतिहासिक तथ्यों के लिए बहुत मटकना पड रहा है । मेवाख खण्ड मे मेवाड के अन्य गौरवेलाली व्यक्तित्वो का विस्तृत परिचय आना चाहिए था किन्तु सेवाड में एकतो दरस दिशा मे वहत कम शोध हई । दूसरा, जो इस विषय मे थोडा काम करते भी हैं, ती ऐसे व्यक्तियों ने उतनी रुचि नही ली जितनी मैं चाहता था | फिर भी जितना नवीन मिल पाया उतना लिया है। तीसरा खड “जैन तत्त्व विद्या' से सम्बन्धित है । सागर की भाँति असीम जैन तत्त्व विद्या (जैनोलोजी) का जितना आलोडन किया जाय उतना ही अम्रत और अमूल्य मणियाँ मिलने की निद्दिचत सम्मावना है । विद्वान्‌ लेखको ने विविध विपयों का आलोडन कर जो विद्यामृत हमे दिया है, उससे बहुआयामी जैन विद्या का एक परिचय प्राप्त हो जाता है, जो रुचिकर भी है, शानवघक भी । = यै चतुर्थं खड मे, “जन साघना, साहित्य ओौर सस्कृति” पर १७ उच्च कोटि के लेख ई 1 साधना और साहित्य शशि विषय पर पर्याप्त सामग्री भिली है, पर जैन सस्कृति पर अनुशीलनात्मक एवं चिल्तन प्रधान लेख नहीं प्राय आये | जो प आये वे कुछ स्तर! के नही लगे, इसलिए सास्क्ृतिक लेखो का असाब स्वय मुझे मी सटकता रहा । ५ ] নী पाँचवें भगवान महावीर तक और ग्रन्थ के इतिहास और परम्परा नामक पाँचवें खण्ड में भगवान ऋषमदेय से मगवान मह्‌ से लिखा गया हैं। इस सारे लेखन काय मे उनके बाद गणघर, श्रुत्केवली ओर स्थविरपरम्परा पर क़मगत हष्टि सै किसी १ सर्वाधिक उपमो श्री दस्तिमल जी महाराज (मारकर) दारा लिखित “जनम का मौलिक इतिहास” अथम और द्वितीय साग का किया गया । ये दोनो प्रकाशन जैनधम के इतिहास को प्रामाणिक रूप से प्रस्तुत करने भे बडे साथक सिद्ध हुए हैं, ऐसा मेरा विश्वास है । निचन्ध विषय, माषा मौर शैली की हृष्टि सै निश्चय ही वटे उत्तम मौर विद्वदुयम्य है तो कुछ निधाव कुं निवन भाषा-शैली और विषय-वस्तु की दृष्टि से सामान्य मो हैं।




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