षटखंडागम | Shatkhandagam

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Shatkhandagam  by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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65458 9 ह * शोध प्रतिष्ठान চক রা মি সি সপ সি স্পা = ~ णले त भवन তান (+ टेल्लं (হট द ৯৯৯২২ 2 1 सत्परूपणाके अन्तर्म प्रशस्त অনন্ত -सेद्धान्तकी प्रात हस्तङिखित प्रतेयोंमे सप्ररूपणा वेवरणके अन्तम नेन्न कनाडु पाठ पाया जाता है --- सततशादभावनद्‌ पावनभोगनियोग वाकातेय चित्तवृत्तियरूविं नख्ङदन गरूप ॒त्तडिदं गजं ष्रिपोगेज सोच्वतयद्मणदिसिद्धातसुनीदचन्नुद्य बुधकेरवपडमंडन सतणमेणोसुद्गुणयणक भेदुवुदि अनन्तनोन्त' वाक्कांतेय चित्ततल्लीय पद॒र्षिण 'दर्षहुघाकि 'हत्सरोजांतररागरजिददिन कुरुभूषण “*दिव्यसेद्धांस्त- मुनीदृजुब्बलयशोजगमतीर्थमछर्र सततकालफायमत्सिश्चरित दिनदि दिनक्के चीय॑ तउतिदंदुदय হিম इपैमेयो छांतवविद्वमोददाद तवे कंतु मुन्त॒गिदे सश्वरित ईंलछचन्द्रदेवसैद्धान्तमुनीन्द्ररुर्जितयशोज्वकरजंगमतीर्य- मर मैंने यह कनाड़ी पाठ अपने सहयोगी मित्र डाक्टर ए. एन. उपाध्याय प्रोफेसर राजाराम कालेज कोल्हापुर, जेनकी मातृभाषा भी कनाडी है, के पास संशोधनाय भेजा था | उन्होंने, यह- कार्य अपने काठेजके कनाडी भाषाके प्रोफेसर श्री. के. जी. कुंदनगार महोदयके द्वारा करा कर मेरे पास भेजनेकी कृपा की । इसप्रकार जो संशो घेत कनाड़ी पाठ और उसका अलुवाद. मुद्ते प्राप्त हुआ, वह नेन्न प्रकार है। पाठक देखेंगे के उक्त पाठ परसे नेन्न कनाड़ी पथ सुसंशोधित- कर निकालनेम सशोधकोंने कितना अधिक प रेश्रम किया है । १ सततस्ञातमावनेय पावनभोगनियोग € वाणि ) वा- काँतेय चिच्ठवृत्तियोकवि नक ( वि गढ मोहनां ) गरू- पं तकेद्‌ गड अचुरपकजशोमितपद्मणंद्सि- छाल्तमुनीन्क्चचब्नजुदुय शुघकैरवंडसडनस्‌ | ¶ ॥ य লা बुद्धिगे चद्वनंते था- - जांतररागरजिवमनं कुलभूषणदिब्यसेब्यसै- द्वांतमुनीन्द्ररूजितयशोज्वकछजगमर्तार्थकदपर ॥ २ ॥ २ प्राप्त अतियोंमें इस अशस्तिमें अनेक पाठमेद पाये जाते हैं। यहां पर सहारनपुरकी - अतिके-अलपार: पाठ रखा गया हैं जिसका मिलान हमें वौस्सेवा सदिरके अधिष्ठाता प. जुगछकिशोरजी पुख्तारके.दारा आघ होः पका | केवछ हमारी अ. प्रतिमें जो अधिक पाठ पाये जाते हैं वे टिप्पणमें दियेगये 1 २ अनन्तस्ववोन्त- ই ) ४ षत्‌ । ५ दिव्यसेन्य । ६ तौ्ेंदमहयरस्सें | ७ महरुदरू। ~=




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