सत्यं शिवं सुन्दरम (भाग 2 ) | Satyam Shivam Sundaram Bhag-2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५८४ ] म्य दिवे सुन्दरम [ शिवम्‌ प्रदेश को सभी कन्याग्रो का हिमाचल-कन्या माना जा सकता है। देवता के #प में शिव की पौराणिक कल्पना में भी उनकी उत्पत्ति का प्रसग उस मातृ तत्र वे युग में अकल्पनीय था। परम्परा और इतिहास म मिलने वाली सादी धारणायें पुस्प तन की वृत्तियों वे अनुरूप हैं। मातृ-तत्र की परम्पराओरो के वे ही अश्रवशेष बचे हैं जो पुन्पतव्र को मान्य भझ्थवा उसके लिए अनिवार्य रह) उसमे माता की महिमा গীং दम्पत्ति के दन्द्र पदों मे स्त्री वे नाम की प्राथमिकता ही मुस्य दिखाई देते हैं । बालक के जन्म के प्रसंग श्र रहस्य मातृ तत्र के युग में पुरुषों क॑ लिए पूर्णत निषिद्ध शौर श्रविदित रहने के कारण सान्धिकाल तक की परम्परा म जन्म का प्रसय नही मिल सक्ता 1 भ्रयोनिजामो और भअ्रप्सराञो के जन्म की अदभुत कल्पनाय भी इसी परिस्थिति का फल है । प्रस्तु, शिव के चरित में जन्म का प्रसग नही है । सामान्यतः एक समाधिस्थ योगी के रूप में ही उनकी कत्पना की जाती है। वैलाण तो उनवा निवास है। तप और योग की एकान्त साधना भारतीय धर्म और अध्यात्म का बीज-मत्र है| यही सावना भनुष्य की पशु प्रतृत्तियों वे संयम श्रौर सस्कार का भागें है। इसी मार्ग से जीवने की गति कत्याण की ओर सभव हा सकती है। शिव ने इस मार्ग का आरम्भिक निर्माण किया! इसीलिए वे घर्म, श्रध्यात्म, व्याकरण, कला, शास्य झादि के प्रवर्तक माने जाते हूँ । यही सावना समस्त विद्यान्नो तथा सस्कृत के अन्य कल्पतस्मों का अ्रकुर है। चरित की दृष्टि से विवाह के प्रभग से ही शिव वी कथा वा गझारम्भ किया जा सकता है। भारतोय परिवारों में शिव-पार्बती का विवाह जिस रुप में प्रतिष्ठित और पुजित है उससे यही सकेत मिलता है कि कदाचित्‌ शितर में हो मातृ-तन के स्वच्छन्द जीवन में विवाह की मर्यादा का सूत्रपात क्या। यह सूत्र पात भी उन्होने ऐसी उत्तम विधि से किया कि विवाह की प्रथा समाज मे प्रतिष्ठित हुई और शिव-पार्वती वैवाहिक सवन्ध के आ्रादर्श के रूप मे पूजित हुये । मातू-वत् की इस स्वच्छन्दवा तथा सन्विकाल को पुस्य ই গরিলা से उत्पन उच्छु खल अराजक्ता मे शिव ने दोनों ओर जिस एकनिप्ठ भाव और सवन्व की प्रतिष्ठा की वही सामाजिक जीवन के मगल का मुल-सूत्र है। शिव के द्वारा प्रवर्तित इस वैवाहिक ससस्‍्कृति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण और ध्यान देने योग्य शिव का श्ान्त, गर्भोर, सात्विक, अनतिचारी रौर उदार चरित ह! कदाचित मासाहार वी तुजना में फ्लाहार को महत्व देकर जीवन म सात्विक्ता का यून-पात




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