श्रीभूवलय परिचय | Shri Bhoovalay Parichay

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Shri Bhoovalay Parichay by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्ुमुदेन्डुके शिष्य नृपतु द्भने मपने कविराजमा्ग में तथा पूर्व कवि लोग अपनो कविता में ध्वत्तत्त वेदढा' नाम को पद्धति मे रचना की है । कुमुदेन्दु ने अबने काव्य को “'चत्तन्त वेदडा' पूं कत्रि कथित मागं से मिश्रित करके आगे बढा दिया है । चत्तत्न को चार भांग मे- -और वेदड को १२ अध्याय से १२ वें अध्याय के श्रत. तक भ्रन्तर्गत रूप दडक रूप गद्य साहित्य मे रचना करके नृप तु के के पहले कर्नाटक छन्द को दर्शाया है। कुमुदेन्दु ्राचायं ने प्रपने काव्यमे कहा है कि .--- मिय्लिवतिगाय देढ्दूतुर हदिनेंदु । प्रगरित वक्षरभाषे ।1६-१६८। शयशादवि पद्धलवि सोगसिस रक्षिसहे । सिगुबभाषेश्वु होरशिल्ल । अश्तिक्लांक्ता बेने मुनि नाथर । मुरु परंपरेय विरचित1।६-१६६। चश्तिय-सांचत्य रागदोछउगिसि । परतद विषय गछेल्‍ल।७१६२। अक्ब त्मदेल्लमि -कालवदोत्ठेंज । असहश ज्ञानद्‌ साँगत्य । “उसहसेलरुसोश्वव्‌ ग्रसनान। अससान साँगत्य वहुदु। -१२३-१२२॥। यह्‌ कान्य भन्न होने के कारण इसका विशेष निषूपणा करने कौ जरूइत बही- रही । उसका उद्सहरण थोडा-सा यहाँ दिया जाता है । করি थी मवदुसमराज गुरू भूमडलाचार्य एकत्वभावनाभावितरु उभय नय सङ्गर शुप्तरू चवुष्कष्म्य रहितर परचत्रत समय तरू सप्त तत्व सरो- जिनी “सजुहुसरु “प्रस्टमढ मजतरूु, नव विधाबालब्रह्म चर्यालकृतरु -दह्मधर्म समेत दादश-हाक्षहांय आदर पाह्यवारु चजुदेश्न पूर्वादिशुरुरल । इस प्रकार १२ [अ] और ३१ पग्रध्याय से ५० श्रेणी में उसका विभाजन किया है। सूधचलय की काव्यवद्ध रचना कुमुबेन्दु ने अबने कल्‍व्य को अक्षरों में नही लिखा है, किन्तु पूर्व मे कहे हुए गीतम-सशाधर के ममल प्राभृत के समन इसी पाहुड ग्रन्थ को श्राचायं विव सेन के. चिन. हषर के खान, इनके सम्म. साहिन्य का श्राधार रखते हए कन्नड, सस्क्ृत, प्रकृत में भूतबली-आचार्य हारा लिखे हुए सम्रान, अथवा नागाजुन भ्राचायं द्वारा लिखे हुए क्क्षपुट गश्णित के समान अंकों मे गणित पद्धति से गणना कर गुणन करके प्कों मे लिखा है। ठ ५ ज श्रोदिनोछत भूह॒तंदि तिडांत। दादि अंतृय बनेलल चित्त ॥ साधिप राज अमोघ बर्यंनगुरु। श्लाधिपश्रमसिद्ध काव्य 1६-१£४५। पूर्वाचायों के समान इन्होने ४६ समिलट मे ग्रव्य को स्ना को है, हेता उल्लेख किया गया है। यह सर्व॑भाषामयी, काव्य मूड और औढ़ श्री लोगो को लक्ष्य मे रखकर सरल भाषा मे रचा गया है। सात सो ग्रठारह भाषाओं को काव्य मे निहित करते हुए कही-कही चक्रबद्ध और कही-कट्टी चिन्हबद्ध काव्यो से अ्रलकृत किया गया है पहले यह ग्रन्थ मूल कानड़ी भाषा में छपा है उसमें मुद्रित ग्रन्थ के पद्मों में श्रेरिएबद्ध काव्य है । उस काव्य बध में आने वाले कन्नड़ काव्य के आदि अक्षरों को ऊपर से लेकर नीचे पढते जांय तो प्राकृत काव्य निकलता है और मध्य मे २७ अक्षर बाद ऊपर से नीचे को पढ़ने पर सस्क्ृत काव्य निकलता है। इस तरह पद्यबद्ध रचना का अलग-प्रलग रीति से अध्यमत किया जाय तो अनेक बध में अनेक भाषा निकलती हैं ऐसा कुरुद्वेन्दु अचायं कहते हैं । चयो के नाम चक्रवघ, हयवध, पदुम, शुद्धः ववमाकवधघ, वर पदुमबंध, महापदुम, द्वीप सागर, पन्लव, ग्रम्बुबघ, सरस, सलाक, श्रेणी, श्रक, लोक, रोम करप, करव मयूर, सीमातीतादि वध, काम के पदुम बध, नख, चक्रक, सौमीतीत भरित बव, इत्यादि बधो से कात्य रचा णया रै! यह्‌ काव्य श्रागे चलकर अके बंध से निकल कर इममे क्रम से सभी विषय पह्यथित हो सकेगे । आचार्य कुमुदेन्दु की धामिक दृष्टि का इससे अधिक दिग्दर्शन करासे की अरूरत बी है ।इस ऋरकलय ঈ- বহত मे-तर्क व्याकरण, छंद-नि्घटू अलंकार ন্যাম अर, चाटकार्ष््ॉय, गणित, ज्योतिष सकल शास्त्रीय विद्यादि सम्पल्न सदी के सभान अश्भीर बह नुभाव, लोकत्रय मे ग्रग्रमर मारव विशे रहित, स्कल अंहोयकलावार्ये ताकिक चक्रवर्ती शत विद्या चतुम्रु ख, षटतर्क विभोदर, सेयाविक कादि, बेशेषिक भाषा प्राभृतक, मीम[ंसक विद्याधर स्पमुद्रिकं भृवलय -सम्पन्व । इस तरह वेबड की गद्य मे रचना को गई है। इस प्रकार कह कर अपने और अपनी विद्वत्ता के विषय में भी विवेचन किया गया है। इस कारण लोक़ में उन्हें, समतावादो, सकलज्ञानकोविंद रझूग-




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