सदयवत्स वीर प्रबंध | Sadayvats Veer Prabandh

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Sadayvats Veer Prabandh by कवि भीम -Kavi Bheemकीर्तिवर्धन -Kirtivardhanमजुलाल मजमुदार -Majulal Majamudar

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मजुलाल मजमुदार -Majulal Majamudar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ * 1 वढ़ाब्‌ श्री मनोहर शर्मा एम० 7०, वित्ताऊ श्र प० श्रीलालजी मिश्र एम० ए०, ( डलोद, थे । इष प्रकार सस्या अपन १६ वर्षों के छीदन-काव म, सस्हृत, हिन्दी झौर राजस्थानी साहित्य वी निरतर सेवा करती रहो है। भावित्र सकट से ग्रस्त इस पस्था के लिप्रे यह समव नही हो सका कि यह अपन बयक्रम को नियमित रूपस पूरा कर सकती, फिर भा यदा कदा लडखच बर गिरते पढ़ते इसके कायकत्ताग्रों ने राजस्थान भारती” का सम्पादत एवं प्रकाशन जारी रखा झौर यह प्रयास क्या कि नाना प्रकार की बाघाग्रा के बावजूद भी साहित्य संवा का काय निरतर चलता रहे । यह ठीक है कि सस्या के पास श्रपना निरी मवत नही है, नशच्छा प्म पुस्तकालय है) श्रौर न काय को मुचा श्प से सम्पादित करन के समुचित साधन ही हैं, परन्तु साथना के भ्रमाव मे मो सस्या फे बायवर्ताओं ने साहित्य पी जो मौन भौर एकात साधना को है वह प्रकाश में गान पर सस्या दे गौरव को निश्चय हो बढा सकते वाली होगी । राजस्थानी-साहिय मदर श्रत्यत विशाल है | प्रव तक इसका प्रत्यल्प प्रंश ही प्रकाश मे झ्राया है । प्राचीन भारतीय वाड भय के ग्लम्य एवं भ्रनघ रत्नों को प्रकाशित करवे' विद्वज्वनो और साहित्यिको के समत्ष प्रस्तुत बरना एवं उन्हें घुगमता से प्राप्त कराना सस्या का लक्ष्य रहा है। हम अपनी इस लक्ष्य पूत्ति को प्रोर घोरे घीरे विन्तु हृढता के साथ भप्रसर हो रहे हैं । यद्यपि अब तक पत्रिका तथा क्तिपय पुस्तयों वे श्रतिरिक्त ग्रजपण द्वारा प्राप्त भय महत्वपूण सामग्रो का प्रकाशन करा देनामी प्रमीप्ट था, परतु । प्र्थामाव के कारण ऐसा क्या जाना समव नहीं हो सत्ा। हप वी बात है कि भारत सरवार के वतानिक सशोव एवं सास्द्ृतिक লাযকম মঙ্গালম (১101015৮ 01501675110 76390700200. 0180] 40008) ন' গদনী प्राघुनिक भारतीय भाषाप्रा के विकास की योजना के अवगत हमार कायक्रम को स्वीकृत कर प्रकाशन के लिये रु० १५०००) इस मद म॒ राजस्थान सरवार को दिये तथा राजस्थान सरकार द्वारा उतनी ही राशि अपनी সাং ঘ मिलाकर कुल रू० ३००००) तीस हजार की सहायता, राजस्थानी साहित्य क॑ सम्पादन प्रकाशन




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