फैसिज्म की आत्मा | Fasizm Ki Aatama

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Fasizm Ki Aatama by ती० एन० कुचुन्नी विमल कैरलीय -T. N.kuchunni Vimal Kairlia

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ২০ ] चूसनेवाले शासक वर्ग केवल अपने स्वाथं की रक्षा करना चाहते, थे। कृषक, सजदूर तथा अन्य पेशा करनेवाली साधारण जनता को कठिन परिश्रम करने पर भी अपने पेट भरने के लिये कठि- नाई पडती थी । शासक वग ने अपनी प्रभुता को कायम रखने ओर अपने अन्‍न्यायों को छिपाने के लिये समाज-संगठन के साथ दी घम, सभ्यता, आचार, व्यवहार, नीति, न्याय इत्यादि की सृष्टि की। जिनकी उत्पत्ति पहले नहीं हुई थी। सभ्यता, शासन, नियम आदि की सृष्टि शासक-वर्ग ने अपने अन्यायों का समथन कराने के लिये किया था। शोषित जनता शासकों के द्वारा सब तरह से दबायी जाती थी और वह दलित थी। शासकों ने उसको असभ्य ओर अस्पृश्य बताकर विद्या, ज्ञान और बुद्धि-विकास से वंचित रखा। इस कारण भोली भाली जनता अपने ऊपर होने वाले जुल्मों को पहचान नहीं सकी और सभी ने अपनी शोचनीय दशा को भाग्य का दोष समझ लिया। आधुनिक समाज जिस सभ्यता, संस्कृति, आचार, व्यवहार ओर नीति-न्याय के आधार पर चल रहा है, वह इन्हीं प्रारंभिक सभ्यतादि का विकसित शूप भाग हे । शोषक और शासक वर्ग के अन्यायपृरं प्रभुत्व को स्थायी रखने के लिये रची गयी इस सभ्यता के असभ्यता, आचार व्यवहार को अनाचार, संस्कृति को कुसंस्कृति, राज नियम तथा नीति-न्याय को अनीति ही हम कह सकते हैं । जबसे समाज का संगठन हुआ, तब से अभी तक शासक वर्ग या शोषक वर्ग समाज के ऊपर इन्हीं के बल से




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