विशिष्ठ कहानियाँ | Vishishth Kahaniyan

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Vishishth Kahaniyan by आंतोन चेखव - Aanton Chekhav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९३ शिल्प की दृष्टि से प्राचीन कहानियों मे कुतृहल एवं औ्ौत्सक्य की रक्षा के लिए मानवेतर उपकरणों का सहारा लिया जाता था। आज की कहानी उन्हें बहुत पीछे छोड़ चुको हैं। ऐसे उपकरणों से कहानी में चमत्कार श्रवरश्य ग्रा जाता था, किन्तु वह जीवन से अत्यधिक दूर हो जाती थी । बात यह थी कि जीवन की प्रिय वस्तु होते हुए भी प्राचीन कथाकारों ने कहानी को जीवन से दूर ही रखा था। उनकी कहानी के मूल में आदर्श-स्थापन की लालसा रहती थी । पंचतंत्र तथा 'हितोपदेश” की पश-पक्तियों की कहानी का प्रतिपाद्य भी कोई न कोई आदर्श ही होता था, किन्तु जीवन का प्रतिपाद्य तो सवंदा आदर्श नहीं होता--भले ही वह झादर्श की ओर उन्मुख हो । इसी से कहानियों का आरम्भ प्राय. एक था राजा से ओर अन्त “भगवान्‌ ने जैसे उसके दिन फेरे, तेसे सबके दिन फिर! से होता था । प्राचीन कहानियों का उद्देश्य जीवन का चित्र प्रस्तुत करना नहीं, वरन चमत्कार उत्पन्त कर तथा जिज्ञासा जगा कर सम्पूर्ण मानव-समाज के कल्याण की सृष्टि करना था। भ्राज कहानी यह उद्देश्य नहीं रहा । वह राजा श्रौर रानियों के जीवन तक ही नहीं रही, जन-साधारण के जीवन का चित्र भी कहानियों में व्याप्त हुआ । प्राचीन कहानियों में अश्रनेक उपकहानियाँ रहती थीं, आज की कहानियाँ ऐसी नहीं होती । ञ्राज वे पहले से अधिक मनोवैज्ञानिक तथा मानवीय हैं। जीवन के सम्पर्क में ही वे जीवन पा कर जीवित हैं । कहानी की परिभाषा विभिन्न पश्चिमी विद्वानों ने कहानी के सम्बन्ध में श्रपनी भावना इष्न प्रकार व्यक्ति की है : “कहानी में घटनाश्रों के विववरश और सक्रियता के साथ-साथ एक ऐसा ग्राशातीत वेगवान्‌ विकास दिखाया जाना चाहिये, जो हमारी जिज्ञासा-वत्ति को स्थिर रखते हुए चरम बिन्दु को स्पर्श कर एक सन्तोषमलक पर्यवसत्ति तक पहुँच जाय ।” -द्यवेरु शेलल




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