राजयोग | Rajyog
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है राजयोग
हे वह लान के ठीक सामने है और वीं से गले की निचली तद का सबसे
वड़ा कमरा किवाड़ खुले रहने पर साफ़ देख पड़ता है ।
कुआर का महीना है। घाम और वादल साथ ही साथ चल रहे हैं ।
शम को प्रायः चार बज रहा है । नीचे के बड़े कमरे के, जो सड़क के ठीक
सामने है, तीन किवोड़ खोलकर कोई अधेड़ पुरुष दरवाज़ों के सामने वारी-
बारी खड़ा होकर पीतल की छड़ में लगे हुए रंगीन पर्दो' को समेट रहा है ।
इसका चौड़ा और ऊँचा मस्तक, ऐ ठी हई लम्बी मू, सिर पर जैपुरी तं
का मुरेठा, गेहुएँ रंग के चेहरे में बड़ी बड़ी सुर्ख आँखें--आज राणा प्रताप
का जमाना नहीं--नहीं तो इसकी मज़बूत मुट्ठी में खुली सिरोही लचकती
होतो । इसका नाम गजराज सिंह है । गजराज सिंह वँगले की सीढ़ी से नीचे
उतरकर लान की ओर बढ़ता है। वगीचे में कई आदमी काम में लगे हैं ।
कोई पौधों की जङ् गो इकर उसमे खाद् डाल रहा हैं, कोई पानी दे रहा दै ।
अड़कीली पोशाक में कई सिपाही बन्दूक में संगीन लगाये घूम रहें हैं ।
राजकुमार शत्रुसूदन सिंह का कमरे की वगल का दरवाजा खोलकर इस
कमरे में प्रवेश । कमरे की सजावट अंग्रेजी ढंग पर हुई है। দহ की
जगह ऊनी रंगीन कालीन विछी है। कमरे के बीच में छोटी तिपाई और उसके
चारों ओर गद्दे दार कुर्सियाँ पड़ी हैं। सामने की दीवार में खूटियों की क्रतार पर
जानवरों के सिर और उसके नीचे मढ़कदार वाजारू चित्र वने हँ । दीवाल के
वीच में ठीक सामने घड़ी लगी है, उसमें चार बज रहा ह । राजकुमार की
अवस्था प्रायः तीस वर्ष की है। एकहरा, गोरा, लम्बा शरीर, नुकौली नाक,
बड़े-बड़े कान, लग्वी और चमकीली आँखें, लेकिन पेंसी हुई | लम्बे काले
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