वैदिक समय के सैन्यकी शिक्षा और रचना | Vaidik Samayke Sainyki Shiksha Aur Rachana

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Vaidik Samayke Sainyki Shiksha Aur Rachana by दामोदर सातवलेकर - Damodar Satavlekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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সি, ং 4 (१९) वेदिक समय नाम दैं। इनमें पैनिकोकी घंख्याते ये बनते हैं। आर्धके विपनसें वेदमंत्रेर्त ऐसा बर्णत भाया है--- ~ तं चः शध मारतं च्यः गिरा । ऋ. २।३०।११ घापका वद्द सेब बाणीद्वारा प्रशंसा योग्य है | अर्थात्‌ प्रशंसा करने योग्य कार्य सापके लनिकीय संघद्दारा द्ोता है। तचः शर्च रथाताम्‌ । ऋ “ क्षापका उथोंका संघ है। * पदाती लैनिकोंका संघ दोता है वेस्ा रथोंवाली सेनाका मी संघ होता ই | ছুল লহ पदावि पैनिक, रथी सैनिक, घुदसवार सैनिक, वैमानिक तनिक देते अनेक स्थ मर्गो सेना होते हैं । तवः श्चं स्थेश्चुम सवेष আনল । क, ५।५६।९ 4 तुम्हारा पह रथोंमतें शोमनेवाछा चछवान्‌ संघ है, उसको में बुछावा हूं।! यद्वां रथमें श्ोमनेवाके संघका घन है। गरदः शर्घाय घृष्चये स्वेपधुस्ताय शुष्मिणे | हक. १11३७18 ' आपके श्युर तेजस्वी वलवान्‌ स्रघके चयि ष्टम समान हार्पण करते हैं। ! घथा--+ चृष्णे शर्चाय छुमखाप चेघसे खुवुक्ति भर । च. १।६४।१ ° ग्रछवान्‌ उत्तम पूननीय, विक्षेप श्रेष्ठ कर्म करनेवाले पीरोंके संघकी प्रशंसा कर 1” भौर ६खिये-- भर शरर्घाय मासताय खभानवे पर्वतच्युते यचेत। ऋ. ५।५४।१ शर्धाय प्र यज्यवे खुखाद्ये तवस मन्ददिष् धुनिच्रताय शवसे । क. ५१८५०1१ / मस्तोंके धत्यत तेजस्वी पर्वे्चों को भी द्विक्ानिवाले কষা লক্ষোত হী |? * लरत पूज्य, उत्तम सुन्दर लाभूषण भरीरपर धारण करनेवाले, चलछदान्‌ , कानन्दसे इष्ट कार्य करनेवाडे, शब्रुको टखादनेवाले, लतिघलवान्‌ मदर्तोंके संघका स्वागत करो | ! इन सन्त्रोंसें थे सख्त वीरोंके संघ क्या करते हैं, इनका घछ कैपा होता दे भाद्वि वहुत वाति मननीय ई। वथा झौर-- या दार्चाय मारताय स्वसानवे श्रवः भम्ृत्य चुक्षत । डर, ६12८11 +२ ७31।५३॥1१७ के सैन्‍्यकी रचना ३ दिवः शर्घाय शुचय। मनीया उद्मा अस्पृश्नन 1 यर, ६।६ ६।११ ‹ मन्‌ वीरोंके तेनल्री लंघके लिये बक्षय धन दें दो। वीरोंके संघके लिये उम्र चीरताकी प्रसवनेवाले शुद्ध सोत्र चछते रहे | ! इन वीरोंके काब्य झुद्ध द्वोते हैं, चीर्य वदानेवाले हैं, ठेन्नखिताका संवधन करनेवाले हैं इस कारण वे काब्य गाने योग्य हैं । जो ये काब्य या स्तोन्न ग्रार्येगे वे उस्त वीर्य- शौार्यादि गुर्णोसे युक्त होंगे । झौर देखिये-- গুতা হানে লালা भरध्च हव्या चुप प्रयाव्ते ॥ ऋ, ८२०९ ¢ जिनका भाक्रमण बलशाली होहि उष वीररि सधके लिये क्षक्ष भरपूर दे दो 1” तथा कौर मी देखो--- उच्च च आज्ञ। द्रा श्वास | अथ मरद्ध गणः तुविष्मान्‌। श्युशो वः शुप्मः ऋुष्पी मनांसि धुनिमंनिरिव शार्घस्य घप्णोंः ॥ धट० ७।५६।७-८ 6 हे बोरो ! क्षापक्रा बछ यढा प्रतर हे, भापके बढ उत्तम स्थिर हँ | क्षीर मरुत वीरॉका संघ बदा घलशाछी ই। জালা নক লিন ই, লল হান क्रोष करनेवाले हैं। भापके क्ाक्रमणका चेग सननशीछ सुनिके समान विधारसे हेवा है, धापके शत्रुपर लाक्रमण ऐसे निद्राप হী হ।, ये वीर द्ात्रुपर वेगसे शाक्रमण करते हैं ठयापि उनमें शन्रुछझा नाश करनेका सामथ्य द्ोनेषर भी वे शविचारये साक्रमण नहीं करते, परन्तु ऋषिमुनिके समान वे विचार- चूक जो करना है অহ काचे दें, उनमें शब्रुपर क्रोध हे, द्ान्नका नाश करनेकी इच्छा है, पर क्षविचर नहीं है द्रप कारण इन वीरोंछो यश प्राप्त होता दे । इस कारण इन वीरोंका शादर दोना चाद्िये | चधा-- ऋीछ वश शर्चो मादतं अनवाण रखे शुमम्‌ | कण्चा मम प्र गरायत ॥ १ 1 ये पृवठीभिकरापरेभिः साकं वाश्तीपिरल्ञिभिः। अजायत स्वनानवः | २॥ च० १।४०।१-२ ‹ श्टीष्ा-मदुनी चे वलनेर्मे दार, पप्तं अगा * न करनेवाले, रथमें प्ोभनेवाके, मध्य वीरेकि संघका ই




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