महानगर के कथाकार | Mahanagar Ke Kathakar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भताने प्राणा था, पर आप थे नहीं, मैंने उसकी लाश उसके भाई को दिलवा
थी भौर”, सोचा पैसो की वात भी उन्हें दता दू, आखिर उन्ही के पैसे खच
किये है, मैंने, वे तारीफ़ ही करेंगे कि चलो कुछ तो किया उतके लिए, जी
झौर पेमेट ले भ्याया था और उसमें से लाश गाव ले जाने के लिए टैक्सी थाले
फो सी रुपये और क्रिया-कर्म के लिए भाई को दो सो रुपये ই বিষ ৭1
“क्या” सेठ जो चोके, “किससे पुछध कर आपने उस हरामी वे; पिल्ले पर
सोच सौ स्पमे च कर दिये, लाट साहब जी, एक तो यहा डेढ़ लाख का टैकर
उड़ श्या, बीमा कम्पनी से पता नहीं हजनि। भी मिलेगा या नहीं भौर ग्राप
हैं कि तीन सौ की मुक श्रीर लगा झाये !” उनकी आवाज फ़िर ऊपर उठने
लगी, “এ দুর নী मेरा दामाद लगता था क्या कि उसकी लाश को
टेकसी से ले जाने के लिए सौ स्पये यर्च कर दिये है ।'' स्ेठजी बडबडने लग्रे,
“एक तो वो हमारे टेकर से तेल चोरी कर रहा था और हमारा डेढ़ लाख
का टैकर ने इवा! अचानक उन्होनै दात रोक कर मुशी जी को ग्रावाज
दौ--ऐ मुंशी जो, यें तीन सौ रुएये लिख दो सतपाल जी के नाम । हमारी
इतनी हैसियत नहीं है कि दया-धर्म दिखलाते फिरें ।” मैं भोचक रह गया।
सुझे कतई उम्मीद नहीं थी कि बीस-पचीस लाख की मिल्कियत वाला यह सेठ
इन तीन सो रुपयों के लिए इस हृद तक उतर झायेगा। दो पल परशोपेश में
रहा--मार दू ऐसी नौकरी पर लात, थू है ऐसी कमाई पर”, पर अगले ही
पल नौकरी छोड़ने मे घटने वाली सारी घटनाएं तेजी से दिमाग में घूम गयी ।
नही, धोड़ना सरासर मूर्खता होगी । तय कर लिया भ्रोर हुपचाप बाहर भरा
गया। भव सुके यही फेसला करना था कि अपनी ईमानदारी में ओर क्षितते
अतिशत की कटौवी करू +
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