कर्तव्य शास्त्र (मोरंजन पुस्तकमाला २९) | Karthbhya Shastra (manoranjan Pustakmala 29)

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Karthbhya Shastra (manoranjan Pustakmala 29) by गुलाबराय - Gulabray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| हे | किसी कहे भिन्न भिन्न लोगों ने कत्तेव्य-शाख का आदर्श माना है। मल॒ष्य के आचारों अथवा क्रियाओं को अच्छा-बुरा कहने में, जो (निर्णायक मापक वा आदर्श उपयुक्त होता है, उसे स्थिर करना ही कत्तेव्य-शासत्र का! विषय है। जिस शास्त्र द्वारा निःश्रेयस अथवा क्रियायों का अंतिम लक्ष्य निश्चित किया जाय, उसे ही कत्तंव्य-शास्त्र कहते हैं । इस शास्त्र को पढ़कर आचरणों की परीक्षा की कसौरीं मिल जायगी। हम यह जान लेंगे कि हमारे लिये परम श्रेय क्या है ? जो हमारे लिये परम श्रेय है, वहीं केबल ज्ञान से मनुष्य हमारे आचरणों में भले बुरे की जाँच कां कर्त॑व्यपपरायण निर्णायक बन सकता है, क्योंकि यह सब हीं नहीं होता है। लोग मानंगे कि जो हमारा परम श्रेय हे, उसी के अल्ुकूल हमारे सब कार्य होने चाहिए । करत्तव्य-शासत्र द्वारा हम को सदसदाचरण परीक्षा मे बड़ी सहायता मिल सकती है, कितु इससे यह न समभा जाय कि कत्तव्य-शास्त्र में कुछ ऐसे विशेष नियम मिल्नगे, जो मलुष्य को सदाचारी बना सके । वह केवल एक ऐसा नियम निश्चित कर देगा, जिसके द्वारा यह जाना जा सके, कि कोन से आचरण सत्‌ कहें जा सकते है ओर कोन से अखत्‌ | कत्तंज्य-शास्त्र न तो लोगों को सदाचारी बनाने का दावा ही करता है और न वह कोई ऐसा शास्त्र है भी जो मनुष्य को सदाचारी बना सके। सदाचारी बनना मलुष्य की इच्छा ओर संकल्प पर निर्भर है। अंगरेजी भाषा में एक कहावत है, कि घोड़े को पानी तक तो एक ही आदमी ले जा सकता है, कितु बीस आदमी मी उसे पानी पिला नहीं सकते । ` . नीति-अंथ मजुष्य को अधिक से अधिक सदाचार का शान




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